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Wednesday 25 April 2012

आचार्य मानतुंग और उनका समर्पण

 मानतुंग आचार्य ऋषभदेव कि भक्ति स्तुति मे ऐसे खो गए कि उन्हें अपने निज अस्तित्व का भी भान न रहा ! बेडियाँ ऐसे ही नही टूटती ! तादाम्य के बिना तन्मयता के बिना ,तन्मयता और सम्रासी भाव आए बिना बेडियाँ नही टूटती ! जब एकाग्रता आती है ,संकल्प आकार लेता है तब बेडियाँ टूटती हैं !

बादशाह अकबर के दरबार मे तानसेन जब जब संगीत की धुन छेड़ता ,बादशाह का सिर डोलने लग जाता ! जब बादशाह का सिर हिलता तो बहुत सारे लोग सिर हिलाने लगते ! बादशाह संगीत का बडा मर्मज्ञ था इसीलिए सिर हिलाता था ! बहुत लोग उसे देखकर सिर हिलाते थे कि बादशाह सिर हिला रहा है तो हमें भी हिलाना चाहिए ! अन्यथा बादशाह क्या समझेगा ? एक दिन बादशाह के मन मे प्रश्न उभरा -क्या मेरी सभा मे सब संगीत के मर्मज्ञ हैं ? इस प्रश्न का समाधान पाने के लिए उसने दुसरे दिन फरमान जारी कर दिया -तानसेन गायेगा ,उस समय कोई सिर हिलाएगा तो उसका सिर काट दिया जाएगा ! अब कौन सिर हिलाए ? जितने नकली सिर हिलाने वाले थे सब बंद हो गए ! तानसेन ने राग छेड़ा ,और अपनी धुन छेडी और इतना सुन्दर गाया कि बादशाह उसमे डूब गया और उसका सिर हिलने डोलने लगा !जो संगीत के मर्मज्ञ थे उनके सिर भी हिलने लगे !उन्हें संगीत मे डूबकर ये ध्यान ही नही रहा कि उनका सिर कलम कर दिया जाएगा ! जब तन्मयता होती है तब दूसरी बातें याद ही नही रहती हैं !व्यक्ति एकरस बन जाता है ! वस्तुत: संगीत के मर्मज्ञ बहुत कम थे ! चीनी दूध मे इस प्रकार घुल जाती है कि वाह अलग से अपना अस्तित्व कायम नही रखती ! दूध और चीनी एकमेव बन जाते हैं !
आचार्य मानतुंग भी ऋषभ देव कि भक्ति मे तन्मय हो गए ! फिर बेडियाँ और ताले उनका क्या बिगाड़ करते !
भावार्थ है कि हम जो भी कार्य करें सम्पूर्ण समर्पण ,एकाग्रता और तन्मयता के साथ करेंगे तो सफलता निश्चित है !
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की पुस्तक "अंतस्तल का स्पर्श " से

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