मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday 31 October 2012

प्रशंसा



प्रशंसा व पुरस्कार एक ऐसी संजीवनी है जो अनजाने ही अंतरात्मा में नवीन चेतना का संचार कर देती है ! यह एक ऐसा टानिक है जिसके बिना व्यक्ति का विकास ही अवरुद्ध हो जाता है !वस्तुत: यह मानव मात्र की यह मानसिक खुराक है जिसके बिना मानव में काम करने का उत्साह ही उत्पन्न नहीं होता ! जिस तरह मानव का शरीर संतुलित भोजन के अभाव में रोगी हो जाता है ,कमजोर हो जाता है ; उसी तरह संतुलित प्रोत्साहन ,प्रशंसा की कमी के कारण मानव की कार्य क्षमता कम हो जाती है ! 
प्रशंसा व प्रोत्साहन ऐसी रामबाण औषधि है जो हताश ,हतोत्साहित व निरुत्साहित मनुष्य में भी आशा, उमंग व उत्साह भर देती है !प्रशंसा की खुराक देकर आप एक भूखे व्यक्ति से भी मनचाहा और छोटा से छोटा काम करवा सकते हैं !
दूसरी दृष्टि से देखा जाए तो प्रशंसा पाने और यश खाने की आदत एक बड़ी भारी मानवीय दुर्बलता भी है ,जिसका चतुर चालाक व वाकपटु लोग दरुपयोग भी कर लेते हैं ! स्वार्थी लोग इस मानवीय कमजोरी को पहचान कर झूठ –मुठ प्रशंसा करके अपने स्वार्थ सिद्ध करवाने के प्रयास भी करते हैं ! अत: यश की भूख व प्रशंसा की प्यास बुझाते समय प्रशंसक के ह्रदय की पवित्रता की पहचान और अपनी योग्यता का आकलन एवं आत्म निरीक्षण तो कर ही लेना चाहिए !
बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो इसका उपयोग एक चतुर वैद्य की तरह करते हैं कि किसको/ कब /कितनी मात्रा में  प्रशंसा की खुराक दी जाए ? जो कि उसके सर्वांगीण विकास में सहायक हो सके !

Monday 29 October 2012

आर्यिका माँ ज्ञानमती के जन्म दिवस पर नमन



आज आश्विन शुक्ल पूर्णिमा है ......दिगंबर जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी ,जम्बुद्वीप तीर्थ ,हस्तिनापुर की पावन प्रेरणा आर्यिका माँ ज्ञानमती जी के 79 वें जन्म दिवस पर हार्दिक अभिवंदन ....नमन ....आपका तप त्याग हर क्षण हमारे जीवन में भी निरंतर नई उर्जा का संचार करता रहे ......इसी भावना के साथ ........

एक ज्योति से ज्योति सह्स्र्त्रों ,जलती जाएँ  अखिल विश्व में ,
अन्धकार का नाम नहीं रहने पाए इस अवनीतल में !
यूँ तो जुगनू का किंचित टिमटिम प्रकाश होता रहता है ,
किन्तु सूर्य की प्रखर कान्ति से उसका बल खोता रहता है !!

चलो बंधुओं बढते जाओ ,कभी शूल से मत घबराना ,
शूल के पथ को तुम फूलों की  कोमलता से भरते जाना !
यही महानता है जीवन की ज्ञानमती ने सिखलाया है ,
अमर विश्व में रहे “चन्दना”जो प्रकाश हमने पाया है !!

ब्राह्मी चंदनबाला जैसी छवि जिनमे दिखती रहती ,
कुन्दकुन्द गुरुवर सम  जिनकी सतत लेखनी है चलती !
नारी ने भी नर के सदृश दिखाई चर्या यति की ,
मेरा भी वंदन स्वीकारो ,गणिनी माता ज्ञानमती !!

है यही प्रार्थना जिनवर से ,यह प्रभा सदा दिन दुनी हो ,
भारत माता की गोदी इस माता से कभी न सुनी हो !

आर्यिका माता ‘चंदनामती’जी के लेखों  से 


Sunday 28 October 2012

चिन्ता और चिन्तन


चिन्ता हो या चिंतन ,नींद तो दोनों में ही नहीं आती ,पर चिन्ता से चिन्तन श्रेष्ठ है ! चिन्ता एक मानसिक विकृति का नाम है और चिन्तन है विशुद्ध तत्व विचार ! चिन्ता अशांति और आकुलता की जननी है और चिन्तन है निराकुलता और शान्ति का स्त्रोत ! चिंताएं चेतन को जलाती हैं और चिन्तन राग ,द्वेष को ,मन के विकारों को ! चिंताओं के घेरे में आत्मा अनुपलब्ध रह जाता है और चिन्तन से होती है आत्मतत्व की उपलब्धि !

Saturday 27 October 2012

ऊपर देख


ऊपर देख
जीवन यात्रा में भय और संकट की गहराई में मत झांको ,इससे हीन भावना जगती है ,आत्मविश्वास टूटता है ,व्यक्ति अपने आप को असहाय सा महसूस करता है ,भय से प्रताडित हो जाता है !
संकट के समय मन को डांवाडोल मत होने दो ,किन्तु अपने लक्ष्य की अनन्त ऊँचाई की ओर दृष्टि फैलाओ ,अपने आदर्शों की रमणीय कल्पनाओं से मन को आह्लादित करो ! तुम्हारा साहस दोगुना हो जाएगा व संकट छिन्न - भिन्न !
समुद्री यात्रा में एक नाव तूफ़ान के थपेड़े खा कर डगमगाने लगी ! तत्काल ही मांझी युवक रस्सी के सहारे ऊपर चढा और पाल को मजबूती से बाँधा ! जैसे ही वह रस्सी के सहारे नीचे उतरने लगा तो लहरों के आवर्तन से उथल पुथल होते समुद्र पर उसकी दृष्टि पड़ी ,समुद्र का भयंकर गर्जन सुनकर वह युवक कांप गया ! “बचाओ –मै गिर रहा हूँ” की ध्वनि उस के मुख से बरबस ही निकल पड़ी !
वृद्ध मांझी ने नीचे देखते हुए युवक की भयाक्रांत दशा देखी ,वह वहीँ से पुकार उठा ,”युवक नीचे मत देख  ,सामने नीले आकाश में उड़ते पक्षियों को देख !आँखें ऊपर रख !”
युवक ने आँखें ऊपर गडा दी ! धीरे धीरे वह सकुशल नीचे उतर आया !
देवेन्द्र मुनि जी की “खिलती कलियाँ ,मुस्कुराते फूल” से 

Friday 26 October 2012

Good Night


क्षण भंगुर जीवन की कलियाँ ,कल प्रात: काल खिलीं न खिलीं ,
यमराज कुठार लिए फिरता ,तन पर वह चोट झिली न झिली !
क्यों करता है तु कल – कल , कल यह श्वाँस मिली न मिली ,
भज ले प्रभु नाम अरी रसना ,फिर अन्त समय में हिली न हिली !!