मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday 30 November 2011

विचारों का असर

मानसिक विचारधारा का प्रभाव दूसरों पर
बहुत जल्दी पड़ता है ,जिस व्यक्ति की 
भली अथवा बुरी जैसी भी आपकी विचारधारा
होगी ,सामने वाले की भी वैसी ही बन जायेगी
अत: हर व्यक्ति को अपनी विचारधारा स्वच्छ
रखनी चाहिये !

लालच

लालच में फंसकर आदमी को अपनी कुल परंपरा 
का परित्याग नही करना चाहिये ,धन सम्पदा 
सब यहीं की यहीं धरी रह जायेगी ! यह जीव 
अकेला आया है और अकेला ही चला जाएगा !

कल्पनाएँ

मनुष्य अपने जीवन में अनेक कल्पनाएँ संजोता है !
किन्तु कल्पनाये किसी की पूरी नही हुई होती ,अचानक 
मौत आ जाती है ,कल्पनाएँ -कल्पनाएँ ही रह जाती हैं 
अत : शुभ कार्य में देरी न करें !

आज का विचार 30.11.2011


आज का विचार 30.11.2011
मनुष्य का चित्त निर्मल हो जाये तो
देवत्व उससे दूर नही !
आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Tuesday 29 November 2011

भेडचाल

 
    आज का युग भेडचाल की तरह आगे बढ़ रहा है !
   वास्तविक तथ्य का विचार किये बिना ही हम 
   हर किसी का अनुसरण करने लगते हैं ,परन्तु 
   जो व्यक्ति  बिना सोचे  विचारे काम करने लगते हैं 
   उन्हें आखिर में पछताना पड़ता है !

संतोष अमृत

मन की असंतोष वृति ही दुःख का कारण बनती है 
और संतोष वृति सुख का कारण , अति लोभी किसी 
भी स्तिथि में सुखी नही हो सकता  ,अन्ततोगत्वा 
वह दुःख का ही कारण बनता है !   संतोषामृत  ही 
जिसकी  आत्मा तृप्त होती है वही व्यक्ति सुख का 
आस्वादन  कर  सकता है !

आज का विचार 29.11.2011


आज का विचार 29.11.2011
मीठा बोलो, नम के चलो ,बुढ़ापे में
सुखी रहने का उपाए है !
आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

संपत्ति व विपत्ति

संपत्ति को पाकर फूलना नही चाहिये और विपत्ति में 
घबराना नही चाहिये ! संपत्ति व विपत्तिमें समभाव 
रखने वाला व दोनों को अपनी बहने समझने वाला 
ही महापुरुषों की श्रेणी में आता है !

Monday 28 November 2011

क्षमा रुपी शस्त्र

जिसके हाथ में क्षमा रुपीशस्त्र है ,उसका बिगाड दुर्जन 
भी नही कर सकता !समय पर क्षमा वही रख सकता है ,
जिसमे आत्मिक शक्ति का प्राबल्य हो ! कष्टों में भी 
क्षमा धर्म को नही छोडना यह आत्म विजयी के लक्षण हैं !

एकांत की शक्ति

एकान्त में ही शक्ति है ! जहां न संघर्ष है न टूट फुट 
है ,न टकराव और कोलाहल ,बस ऐसी ही एकांत 
दशा परम उपादेय है !

आज का विचार 28.11.2011


आज का विचार 28.11.2011
जैसे सेठ अपनी तिजोरी से धन उतना निकालता
है ,जितनी जरूरत है ! वैसे ही अपने मुख से वचन
उतने ही निकालो जितनी जरूरत है !
आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Sunday 27 November 2011

आज का विचार 27.11.2011


आज का विचार 27.11.2011
जिस सच से लड़ाई हो अथवा हिंसा हो ,
वह झूठ है !
आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Saturday 26 November 2011

पंच परमेष्ठी वन्दना


            पंच परमेष्ठी वन्दना
वन्दना आनंद पुलकित विनयनत हो मै करूँ
एक लय हो एक रस हो भाव तन्मयता वरू
सहज निज आलोक से भाषित स्वयं समबुद्ध हैं
धर्म तीर्थंकर शुभंकर वीतराग विशुद्ध हैं
गति प्रतिष्ठा त्रान दाता आवरण से मुक्त हैं
देव अर्हन दिव्य योगज अतिशयों से युक्त हैं
वन्दना .....................
बंधनों की श्रंखला से मुक्त शक्ति स्रोत हैं
सहज निज आत्मलय में सतत ओत:-प्रोत: हैं
दग्ध कर भव बीज अंकुर ,अरुज अज अविकार हैं
सिद्ध परमात्मा परम ईश्वर  अपुनर्वतार हैं
वन्दना ...................
अमलतम आचार धारा में स्वयं निष्णात हैं
दीप सम शत दीप दीपन के लिये प्रख्यात हैं
धर्म शासन के धुरंधर धीर धर्माचार्य हैं
प्रथम पद के प्रवर प्रतिनिधि प्रगति में अनिवार्य हैं
वन्दना ................
द्वाद्शांगी के प्रवक्ता ज्ञान गरिमा पुंज हैं
साधना के शांत उपवन में सुरम्य निकुंज हैं
सूत्र के स्वाध्याय में संलग्न रहते हैं सदा
उपाध्याय महान श्रुतधर धर्म शासन सम्पदा
वन्दना ...............
लाभ और अलाभ में सुख: दुःख: में मध्यस्थ  हैं
शांतिमय  वैराग्यमय आनन्दमय आत्मस्थ हैं
वासना से विरत आकृति सहज परम प्रसन्न हैं
साधना धन साधु  अन्तर्भाव में आसन्न हैं
 वन्दना.............
रचियता : तेरापंथ के महान जैनाचार्य श्री तुलसी जी

उत्तम आहार है शाकाहार


     
जैसा खाओगे अन्न ,वैसा होवे मन
          आज वैज्ञानिक  प्रयोगों से यह बात स्पष्ट हो गयी है कि मनुष्य जैसा अन्न खाता है वैसा उसका मन होता है ! व्यक्ति के भोजन से उसके विचारों का गहरा सम्बन्ध है !जो व्यक्ति सात्विक भोजन करते हैं उनके विचार भी अत्यंत सात्विक होते हैं और जिनके भोजन में तामसिक चीजों की बहुलता होती है ,जो मांसाहार करते हैं और अन्य अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करते हैं उनके विचार उतने ही विकृत हो जाते हैं ! अमेरिका में एक सर्वेक्षण हुआ ,वहां के तीस नृशंस अपराधियों पर जो किया गया !दस दस व्यक्तियों के तीन ग्रुप बनाये गए ! पहले ग्रुप को छ महीने तक गाय का शुद्ध दूध पिलाया गया ,दूसरे ग्रुप को चावल और शाकाहारी भोजन कराया गया !और तीसरे ग्रुप के लोगों को पूर्ववत मांसाहार दिया गया ! उन्होंने अपने सर्वेक्षण की रिपोर्ट में लिखा कि जिस ग्रुप को शुद्ध दूध दिया गया ,उसके अंदर दो महीने में ही अपराध बोध हो गया ,जो कभी अपना अपराध स्वीकारते नही थे ,उनके अंदर अपराध बोध शुरू हो गया और पश्चाताप भी प्रारंभ हो गया ! जिन्हें शुद्ध शाकाहारी भोजन और चावल दिया गया था छ महीने में उनके अंदर अपराध बोध शुरू हो गया और उन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया !लेकिन जो तीसरा ग्रुप था उनमे अपराधिक प्रवर्ति घटने कि जगह बढ़ गयी क्योंकि उन्हें मांसाहार दिया गया था ,उनका खान पान अशुद्ध था  और फिर उस आधार पर लिखा कि मनुष्य जैसा भोजन करता है ,उसके विचारों पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है !
          यही बात हमारे यहाँ तो बहुत पहले ही कही गयी और लोकाक्ति भी बन गयी कि जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मनइसीलिये मांसाहार का सभी को त्याग करना चाहिये ! मांस भक्षण में हिंसा है और हिंसा अधर्म है ! भारतीय परम्परा शाकाहारअपनाने कि बात करती है ! मांसाहार अनेक रोगों का जन्मदाता भी है ! सभी धर्म ग्रंथों में अहिंसा को महत्व देते हुए शाकाहार अपनाने की बात की गयी है !
          मनुष्य की शारीरिक संरचना भी मांसाहार के अनुकूल नही है ! मनुष्य के दांत ,आँत ,नाख़ून ,जीभ आदि सभी शाकाहारी प्राणियों की तरह ही है !कोई भी मनुष्य पूर्णत: मांसाहार पर नही रह सकता ! जबकि मांसाहारी प्राणियों के जीवन का मूल आधार मांस ही रहता  है ! मांसाहारियों के दाँत तीक्ष्ण ,आंते छोटी एवं नाख़ून पैने होते हैं ,जबकि शाकाहारियों की आँत लंबी होती है ! मांसाहार आंतों के कैंसर का प्रमुख कारण है !
          मांस की तरह अंडा भी मांसाहार के ही अंतर्गत आता है ! यह सिद्ध हो चूका है कि कोई अंडा शाकाहारी नही है !अंडे को शाकाहारी निरुपित करना अहिंसक संस्कृति के साथ एक मजाक है !क्या कोई अंडा पेड पर उगता है ? क्या साग सब्जी कि तरह अंडे को खेतों में उगाया जा सकता है ? अंडा भी शाकाहारी नही है वह तो मुर्गी के जिगर का टुकड़ा है !
          वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि अंडा ,मांस और मछली सभी हमारे स्वास्थ्य के लिये घातक हैं ! अमेरिकी वैज्ञानिक माइकल एस .ब्राउन और डॉक्टर जोसेफ एल .गोल्द्स्तीम जिन्हें सन 1985 में नोबेल पुरस्कार मिला है ,ने सिद्ध कर दिया है कि अंडे से हार्ट अटैक कि सम्भावना बहुत बढ़ जाती है !इसलिए उत्तम आहार सिर्फ शाकाहार ही है ! शाकाहार अपनाओ ,जीवन को उन्नत बनाओ !
  मुनिश्री 108 प्रमाण सागर जी की दिव्य जीवन का द्वारसे