मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Friday 26 July 2013

जय जिनेन्द्र



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार !शुभ संध्या !

जिस प्रकार किसान फसल आने पर पहले पौष्टिक धान को बीज के रूप में बचा लेता है व शेष का भोग करता है ,उसी प्रकार भव्य जन धर्म के फल रूप में प्राप्त विषय भोगों को उदासीन भाव से सेवन करते हैं !

Thursday 25 July 2013

वक्ता और वचन



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या ! 


वक्ता की प्रमाणता से ही वचन प्रमाणित माने जाते हैं !

Monday 22 July 2013

“बुद्धियर्स्य बलं तस्य”



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार !शुभ संध्या !

“बुद्धियर्स्य  बलं तस्य” यानि जिसके पास विवेक है ,युक्ति है , वही संसार के पेचीदे फंदों को सुलझा कर स्वतत्र हो सकता है ! मन और इन्द्रियों की बेलगाम दौड़ को युक्ति से रोका जाएगा तभी वे हमारे अनुकूल होकर बाधक के स्थान पर साधक हो जायेंगे !

Sunday 21 July 2013

ज्ञान और ध्यान



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार !शुभ मध्यान्ह !

ज्ञान जितना उज्जवल होगा ,ध्यान भी उसी कोटि का होगा ! ध्यान से संवर पूर्वक निर्जरा होती है और निर्जरा से मोक्ष की सिद्धि होती है ! व्यक्ति ज्ञानी बन सकता है परन्तु ध्यानी बनने के लिए बाह्य क्रियाओं का निरोध करना ही होगा !

Tuesday 16 July 2013

आचार्य श्री विद्यासागर जी की लिखी काव्य संग्रह “मूक माटी”



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार !शुभ संध्या !
बंधुओं ! मित्रों ! भाइयों और बहनों ! आचार्य श्री विद्यासागर जी की लिखी काव्य संग्रह “मूक माटी” को पढकर मेरे जीवन को एक नयी दिशा व दशा प्राप्त हुई है ! समय के अभाव में आप सब से ज्यादा कुछ  सांझा नही कर पाया ! पुस्तक का एक - एक शब्द अपने आप में एक अहसास है ! इस पुस्तक को एक बार फिर से पढ़ने की इच्छा हुई है लेकिन एक और ग्रन्थ “श्री कार्तिकेय अनुप्रेक्षा” भी साथ साथ पढ़ रहा था सो उसी से कुछ आप सब से साँझा करूँगा आने वाले दिनों में !
सत्य का आत्म समर्पण
और वह भी
असत्य के सामने ?
हे भगवन ! यह कैसा काल आ गया
क्या असत्य शासक बनेगा अब ?
हाय रे ..जौहरी के हाट  में
आज हीरक हार की हार !
हाय रे ....कांच की चकाचौंध में
मरी जा रही
हीरे की जगमगाहट
अब
सती अनुचरी ही चलेगी
व्याभिचारिणी के पीछे - पीछे ?
असत्य की दृष्टि में
सत्य असत्य हो सकता है
और
 असत्य सत्य हो सकता है
परन्तु सत्य को भी नहीं रहा क्या
सत्यासत्य का विवेक
सत्य को भी अपने ऊपर
विश्वास  नहीं रहा ?
भीड़ की पीठ पर बैठकर
क्या सत्य की यात्रा होगी अब ?
नही ........नही ..कभी नही
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज मूक माटीमें