मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Wednesday 26 September 2012

आलोचना पाठ व प्रायश्चित पाठ


आलोचना पाठ
हे नाथ ! मैंने प्रमादवश हैं, दोष भारी जो किये!
             इसी कारण पाप ने हैं ,दुःख मुझको बहु दिये !!
अब शरण आया मै तुम्हारी ,दोष मेरे दूर हों!
           करके दर्श प्रभु आपका, मिथ्यात्व मेरा चूर  हो !!
संकट सहूँ निर्भय बनूँ ,आशीष यदि हो आपका!
             दे दो चरण रज आपकी तो नाश होवे पाप का !!
ग्रह कार्य सम्बन्धी क्रिया में ,मुझसे हुई हिंसा महा !
            मन ,वचन अरु काय से ,ना की दया मैंने अहा !!
स्वार्थवश मैंने न जाने पाप कितने हैं किये !
               खुद बचाया आपको और दुःख दूजे को दिये !!
इन्द्रियों का दास बन मै, हूँ गया इनसे ठगा !
          इसलिए यह पाप मुझको ,दे रहा क्षण क्षण दगा !!
देव ,जिनवाणी ,गुरु की भक्ति नित कर्ता रहूँ !
            शक्ति दो हे नाथ मुझको मै दिगम्बर व्रत धरूं !!
 प्रायश्चित पाठ
शत शत प्रणाम करते ,आशीष हमको देना!
                दोषों को दूर करके ,अपराध क्षम्य करना !!
मन से ,वचन से ,तन से, अपराध पाप करते !
        कृत कारितानुमत से ,दुःख शोक क्लेश सहते !!
चारों कषाय करके ,निज रूप को भुलाया !
               आलस्य भाव करके ,बहु जीव को सताया !!
भोजन ,शयन ,गमन में ,पापों का बंध बाँधा !
                      अज्ञान भाव द्वारा ,अज्ञात पाप बाँधा !!
दिन रात और क्षण क्षण ,अपराध हो रहे हैं !
                इस बोझ से दबे हम ,पापों को ढो रहे हैं !!
गुरुदेव की शरण में प्रायश्चित लेने आये !
         मुक्ति का ‘राज’ पाने ,भव रोग को नशाये !! 
आर्यिका माँ राजश्री द्वारा रचित
संघस्थ आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी

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