मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Sunday 1 April 2012

संगत की रंगत

एक समय एक राजा साहब की महफ़िल मे गाने बजाने के लिए एक वेश्या गयी !  उसके साथ एक पिंजड़े मे उसका तोता भी था ! उसने राजा के दरबार मे आते ही गालियाँ देनी शुरू कर दी ! राजा बहुत क्रोधित हुआ ! वह बोला -तोते के तुरंत मृत्यु दण्ड दिया जाए ! 
तोते  ने बड़ी चालाकी से कहा -हुजूर ,मुझे मेरे भाई से मिलकर अपनी अंतिम इच्छा कहनी है उसके बाद मुझे मारा जाए ,मुझे कोई आपत्ति नही ! मेरा भाई अमुक पण्डित के पास रहता हैं ,उसे कृपया बुलाया जाए ! राजा के हुक्म से उसे पण्डित के साथ  बुलाया गया ! आते ही तोते ने अच्छी अच्छी गाथा शुरू कर दी ,श्लोक सुनाने शुरू कर दिये ! राजा बड़े खुश हुए ! उन्होंने उस तोते के लिए यथोचित  भोजन देने को कहा !  पहले वाला तोता बोला - महाराज ! इसे भोजन और मुझे मृत्यु दण्ड ऐसा क्यों ? जबकि हम एक ही माता के पुत्र हैं ,किन्तु मै  वेश्या के यहाँ  पला बढ़ा,इसीलिए गालियाँ देना सीख गया  और ये पण्डित के यहाँ पला होने से अच्छे -अच्छे श्लोक सीख गया ! 
कहने  का आशय है कि मनुष्य के हाथ मे तो सत् संगति का धारण करना हैं,मनुष्य   भी अनुकरणशील होता है ,उसे जैसी संगत मिलती है वैसा बन जाया करता है ! चांडाल के लड़के को भी सत्संग मिल जाए और सत्संग मे पडकर  अहिंसा को स्थान दे ,परोपकार की तरफ झुके तो वह भी घृणा का पात्र न होकर आदर का पात्र होता है ! ऐसा हमारे महापुरुष कह गए हैं !
मतलब यह है कि जाति से इन्सान बड़ा या छोटा नही होता है ! कोई  किसी का बुरा या भला करने वाला नही है
जो गुणों को ग्रहण करता है वह गुणवान बन जाता है !

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