मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Thursday 6 December 2012

प्रण



जय जिनेन्द्र मित्रों ! नमस्कार ! शुभ प्रात: 

कितनी प्रासंगिक हैं आज के सन्दर्भ में कवि की यह पंक्तियाँ ........

अखिल विश्व में एक सत्य ही, जीवन श्रेष्ठ बनाता है ,
बिना सत्य के जप तप योगाचार भ्रष्ट हो जाता है !
यह पृथ्वी , आकाश और यह रवि ,शशि, तारामंडल भी ,
एक सत्य पर आधारित हैं ,क्षुब्ध महोदधि चंचल भी !
जो नर अपने मुख से वाणी बोल पुन: हट जाते हैं ,
नर तन पाकर पशु से भी वे  ,जीवन नीच बिताते हैं !
मर्द कहाँ वे जो निज  मुख से कहते थे वो  करते थे ?
अपने प्रण की पूर्ति  हेतु जो , हँसते हँसते मरते थे !
गाडी के पहिये की मानिंद , पुरुष वचन चल आज हुए ,
सुबह कहा कुछ ,शाम कहा कुछ ,टोके तो नाराज हुए !

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