मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday 16 April 2013

छोड़ना व पाना



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ संध्या !
जो छोड़ने को तैयार हो जाता है ,समझ लो वह पाने का अधिकारी हो जाता है ! जो बाहर से भर जाते हैं ,वे भीतर से रिक्त हो जाते हैं ! जो भीतर से भरने लगता है वह बाहर से रिक्त होने लगता है ! जिसे अपने अन्दर की रिक्तता का अहसास हो जाता है ,उसे भीतर में कमी महसूस होने लगती है ! वह बाहर के संबंधों को छोड़ना प्रारम्भ कर देता है !
आचार्य श्री 108  पुष्पदंत सागर जी मुनिराज

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