मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Sunday 17 June 2012

selfishness


आचार्य समंतभद्र कहते हैं कि हम सबके चित्त में एक आठ फेन वाला भयंकर विषधर बैठा है जो कूल ,जाति ,रूप ,ज्ञान ,धर्म, बल, वैभव, धन और ऐश्वर्य के अभिमान से आत्मा को जड़ताक्रान्त कर रहा है ! इस पर अभिमान करना अज्ञान है ! ये सब आत्मा के स्वभाव नहीं विभाव हैं ! इनके सहारे अपने आपको उठाने  की कामना करना अज्ञान है ! इसका परिणाम सदैव बुरा होता है !
जलधर नया नया आया
और ,
पवन के सहारे
जैसे आसमान पर चढ गया ,
पर ,
उसे बाहरी जगत का अनुभव ही कब था !
दुसरों के सहारे ऊँचा उठना
भय से खाली नहीं होता ,
इसे वह नहीं जानता था ,
पवन में अपना हाथ खींचा
और
जलधर नीचे आ गया !
सन्त कहते हैं कि पर के सहारे अपने आपको उठाना चाहोगे तो यही परिणति होगी ! जीवन को यथार्थ ऊँचाई प्रदान करना चाह्ते  हो तो आत्मगुणों का विकास करो !
मुनिश्री 108  प्रमाण सागर जी “धर्म जीवन का आधार” से संपादित अंश

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