मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Wednesday 3 April 2013

ध्यान


जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार
ध्यान के द्वारा भौतिक व आध्यात्मिक दोनों प्रकार की अग्नि प्रज्वलित होती है ! सभी चीजें अग्नि मे तपकर ही शुद्ध होती हैं ! स्वर्ण पाषाण से स्वर्ण को प्रथक करना हो तो उसे तपाना पड़ता है ,तपाये बिना कालिमा से स्वर्ण को पृथक नहीं किया जा सकता ! आत्मा और कर्म व शरीर को पृथक करना है तो शरीर व आत्मा दोनों को ही तपाना पड़ता है ! आत्मा भौतिक अग्नि मे नहीं बल्कि ध्यान की अग्नि मे तप कर शुद्ध होती है ! ध्यान मे एकाग्रता ,सजगता व निर्मलता के साथ धैर्य व सतत प्रयास भी आवश्यक है ! तप का अर्थ दुखों को सहना नहीं बल्कि इतनी शक्ति जागृत कर लेना है जिससे दुःख आत्मा व शरीर को प्रभावित न कर सकें !

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