मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Saturday 31 March 2012

प्रभावना अंग

         अज्ञान रुपी अन्धकार के प्रसार को यथा सम्भव उपायों के द्वारा दूर करके जिन शासन के महात्मय को जगत मे प्रकाशित करना प्रभावना अंग है !
         जिस किसी ने प्रथ्वी मंडल के सभी राजाओं को अपना आज्ञाकारी बना लिया है ,जिसके बाहुबल के आगे टिकने मे कोई समर्थ न हो ,वह महाबली भी एक अबला के चंगुल मे फंसकर पानी पानी हो जाता है ! बड़े बड़े शूरवीरों के लोह्मयी वाणों से जिसका बख्तर नही भिद पाता ,वही बख्तर अबला के कटाक्ष वाणों से चूर-चूर होता देखा गया है !
         मतलब यह कि दुनिया के लोगों को वश मे जरूर किया ,परन्तु अपने आपको वश मे नही रखा ! अपने मन को काबू मे नही रखा ! इसीलिए  दुनिया को जीतने के लिए काम को जीतना जरूरी होता है ,जिसने काम को जीत किया वस्तुत: वही जिन है ! सर्व विजेता कहलाने का अधिकारी है !
       जो हर्ष विषादादि सभी तरह के मानसिक  विकारों से सर्वथा दूर हो वही जिन है  और उन्ही जिन भगवान का यह उपदेश है कि हरेक मनुष्य को अपने मन व इन्द्रियों को काबू मे करें !
समझदार व्यक्ति को चाहिये कि अपने मन मे दुसरे की बुरी आदत से हटाकर सन्मार्ग पर लगाने का विचार करें ! किस उपाय से लोग ठीक राह पर आएं ये सोचें !
      मीठे वचनों से उन्हें समझाएं और खुद अपनी ऐसी प्रवृत्ति बनाएँ जिसे आदर्श मानकर लोग उनका अनुसरण करने लग जाएँ ! सबसे पहली बात तो ये है कि हम जिस राह पर लोगों को चलना और देखना पसन्द करते हैं उस पर खुद चलें ! कहें कम और करें अधिक तो लोग अवश्य उसका अनुसरण करेंगें और यही सच्ची प्रभावना होगी !
मूल रचना  :    "रत्न करंड  श्रावकाचार "मानव धर्म  आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी 
 हिन्दी व पद अनुवाद : आचार्य श्री ज्ञान सागर जी व आचार्य श्री विद्या सागर जी   

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