मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday 23 May 2012

कर्म सांसारिक हैं या कि आध्यात्मिक


कर्म सिर्फ एक भौतिक प्रक्रिया नही है ! कर्म एक मानसिक ,भावनात्मक और आध्यात्मिक प्रक्रिया भी है ! कर्म दोनों तरह से किये जा सकते हैं ! सँसार बढ़ाने वाले कर्म भी जो अत्यंत सांसारिक होते हैं और सँसार से पार होने के लिए भी कर्म किये जाते हैं जो कि आध्यात्मिक होते हैं ! सवाल इस बात का है कि मुझे संसार को बढ़ाने वाले कर्म चुनने हैं या कि सँसार से पार होने के लिए कर्म चुनना है ! कोई भी सँसार मे शरीर धारण करने वाला जीव ऐसा नही है जो कर्म ना करे ! कर्म सबको करना पड़ता है ! वे कर्म सांसारिक हैं या कि आध्यात्मिक हैं ,ये हमारे ऊपर निर्भर करता  है !
यदि एक क्षण भी अगर हम चूक गए थे तो क्या हम अगले क्षण अपने को संभाल नही सकते हैं ,संभाल सकते हैं और इतना ही नही अपनी उस चूक का फल जो मिलने वाला है उसको भी हल्का कर सकते हैं ! जो अपराध हमसे अज्ञानता वश बन गया है उस अपराध के प्रभाव से होने वाले फल को हम कम कर सकते हैं ! यहाँ तक कि हम आगे सावधान होकर के नए अपराधों से बच सकते हैं !
जैसे हमारे वस्त्र गंदे हो जाते हैं तो हमारे मन मे ये बात आती कि ऐसे गंदे वस्त्र पहिनना ठीक नही है ! मुझे तो इनको साफ़ सुथरा बनाना चाहिए और मन मे ये विशवास है कि ये साफ़ सुथरे बन सकते हैं ,तो ऐसा विशवास करके हम साबुन ,सोडा आदि का उपयोग करके उन वस्त्रों की मलिनता को हटाते हैं ! इसी तरह ये जो तप ,जप ,आत्म संयम ,पश्चाताप ,प्रायश्चित ये सारी प्रक्रियाएं साबुन सोडे की तरह हैं ,जो हमारी अज्ञानता वश बांधें गए कर्मों की मलिनता को हटाने मे हमारी मदद करती हैं !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें” से संपादित अंश

No comments:

Post a Comment