मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Sunday 25 November 2012

विनय बिना विद्या नहीं


नमस्कार मित्रों  ......जय जिनेन्द्र ! शुभ प्रात:
विनय बिना विद्या नहीं .......(इससे पहले पढ़ें..... अगर कल की पोस्ट नहीं पढ़ी हो तो ) “चोर कौन ?” पोस्ट का Link साथ में उपलब्ध है !
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अभयकुमार ने कहा –सच सच बताओ ! तुमने ही बगीचे से आम चुराए हैं ? सभी चकित थे कि यह व्यक्ति जो पूछताछ कर रहा है कौन है ! अभयकुमार ने उसे गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन राजदरबार में पेश किया !
वह व्यक्ति बोला – महामंत्री जी ! मै व्यवसाय से चोर नहीं हूँ ! सच मानिए ! मेरा नाम मातंग है ! मैंने वह आम अपनी गर्भवती पत्नी की इच्छा पूर्ण करने के लिए ही चुराए थे ! क्योंकि आम इस ऋतू में कहीं और उपलब्ध नहीं थे ! मुझे क्षमा कर दीजिए !
राजा ने हुक्म दिया –इसका अपराध अक्षम्य है ! इसे मृत्यु दण्ड दिया जाए !
अभयकुमार ने सोचा –इसका अपराध तो अपराध है पर शायद मृत्यु दण्ड का अधिकारी तो यह नहीं ! कुछ पल सोचा और मातंग  से पूछा –एक बात बाताओ –उद्यान के चारों ओर ऊँची दीवार होने और दरवाजे पर इतना कडा पहरा होने के बावजूद तुमने ये आम चुराए कैसे ?
हुजूर ! मैने आकर्षणी विद्या सीखी है ! उसी विद्या का प्रयोग करके मैंने फलों की डाल को अपनी ओर आकर्षित कर लिया और उस पर से आम तोड़ लिए ! मातंग  ने सिर झुकाकर जबाब दिया !
अभयकुमार ने राजा को मुखातिब होते हुए कहा –राजन ! मेरी सलाह है कि आप मातंग से यह दुर्लभ विद्या सीख लें ! उसके बाद ही इसे दण्ड दिया जाए !
श्रेणिक को अभयकुमार की बात पसन्द आई ! उन्होंने मातंग से आकर्षणी विद्या सीखना प्रारंभ कर दिया ! मातंग एक आसन पर बैठ गया और राजा को मन्त्र पाठ सीखाने लगा !परन्तु राजा मन्त्र जाप बार -2 भूल जाते ! उन्होंने मातंग से गुस्से में कहा –तुम मुझे ठीक से विद्या नहीं सिखा रहे
 हो !
अबह्य्कुमार ने कहा –मगधेश ! गुरु का स्थान शिष्य से हमेशा ऊँचा होता है ! शिष्य गुरु की विनय करके ही विद्या सीख सकता है !
श्रेणिक अभय का इशारा समझ गये ! उन्होंने मातंग को सिंहासन पर बिठाया और स्वयं उसके सामने नीचे खड़े हो गये ! अबकी बार ज मन्त्र जाप किया तो कुछ समय के उपरान्त उन्हें मन्त्र याद हो गया !
विद्या सीखने से श्रेणिक प्रसन्न हो गये और उन्होंने कहा –तुमने हमें विद्या सिखाई है और इसीलिए अब आपका दर्जा गुरु का है , गुरु को इतने सामन्य से अपराध के लिए दण्ड नहीं दिया जा सकता !
उन्होंने मातंग को यथोचित सम्मान व धन दे कर बिदा कर दीया !
अभयकुमार दरबार में बैठा अब मंद -2 मुस्कुरा रहा था ! उसकी मनचाही इच्छा पूरी हो गयी थी ! आखिर वह एक से मामूली अपराध के लिए मृत्यु दण्ड नहीं चाहता था !
विनय बिना विद्या नहीं मिलती !  विद्या के अभाव में आपको ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती !  जब तक आपको यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति न हो जाए, सच्चा सुख यानी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती !यदि महान बनना है तो विनयी बनें। झुकना सीखें। आप कितने गुणवान हैं, यह आपका झुका हुआ मस्तक बताएगा। वृक्ष जितना फलदार होता है, वह उतना ही झुकता है !उसे अपना परिचय देने की जरूरत नहीं पड़ती! हंस जैसी दृष्टि बनाइए, ताकि गुण को ग्रहण कर सकें और जो बेकार है, उसे छोड़ सकें !

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