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Monday 14 May 2012

शूली का हुकम था, शूल चुभ कर रह गया


एक ज्योतिषी राज दरबार मे उपस्थित हुआ तब उसने भविष्यवाणी की कि एक नियत समय के बाद   राजा के पुत्र को तो राजगद्दी मिलने का योग है और मंत्री का जो पुत्र है उसको फांसी लगने जैसा कुछ योग इसके जीवन मे है !
बस फिर क्या था दोनों ने सुना और दोनों का जैसे जीवन ही बदल गया !
राजा के पुत्र को तो अहंकार हो गया कि मै तो वैसे ही राजपूत्र  हूँ मुझे तो वैसे ही राजगद्दी मिलनी तय है और अब तो ज्योतिषी की भविष्यवाणी हो भी हो गई ! अब तो कुछ ही दिन मे मै राजा बन ही जाऊँगा ! हो गया अहंकार और कर दिया आरम्भ अपने धन संपत्ति और वैभव का ,दुरूपयोग शुरू कर दिया अपने पद का ! ऐशो आराम जो कुछ भी हो सकता था सब ,बुरी आदतें भी आ गई!
उधर मंत्री के पुत्र को लगा कि कुछ ही समय मे मेरा शूली का योग है तब वह और सावधानी से जीवन जीने लगा ! फूंक फूंक कर कदम रखने लगा ! जीवन जैसे संतों के समान हो गया ! कुछ भी करता तो पहले उसका आने वाले जीवन मे जो होता वह सोचता !
जब नियत दिन आने वाला था जिस दिन की भविष्यवाणी उस ज्योतिषी ने की थी तब नियत दिन पर दोनों  उस ज्योतिषी के पास जाने के लिए रवाना हुए ! कहें ज्योतिषी से जाकर कि आप की भविष्यवाणी तो झूठी साबित हो गई ! रास्ते मे चलते हुए राजपुत्र को ठोकर लगी तब नीचे गिर गया तो वहाँ एक गड्ढा हो गया और उस गड्ढे मे उसे स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हुई ! थोडा और आगे चले तो मंत्री पुत्र को पाँव मे बहुत जोर से काँटा लगा ! निकाला तो खून बहने लगा फिर भी मन मे भाव था कि ज्योतिषी के पास जाकर पुछू तो सही कि ऐसा क्या हुआ जो भविष्यवाणी झूठ साबित हो गई !दोनों लगभग एक साथ ज्योतिषी के पास पहुंचे!    
दोनों ने ज्योतिषी से अपने अपने मन की बात कही तब ज्योतिषी ने उनसे कहा कि रास्ते मे तुम्हारे साथ क्या हुआ जरा वह भी बताओ ! रास्ते मे मुझे तो स्वर्ण मुद्राएं मिली –राजपुत्र ने कहा ! और तुम्हे –मंत्री पुत्र को संबोधित कर के ज्योतिषी ने पूछा ! मुझे रास्ते मे काँटा लगा और उस जख्म मे से अभी भी खून बह रहा है –तुरंत उत्तर मिला !
हो गया काम ! तुम्हारे अपने वर्तमान के दुष्कर्मों के फल से तुम्हे जो राजगद्दी मिलने का योग था वह सिर्फ स्वर्ण मुद्राएं मिल कर रह गया और इसे जो शूली का योग था इसके सत्कर्मों के प्रभाव से एक कांटे मे परिवर्तित हो गया –ज्योतिषी ने राज पुत्र को संबोधित कर उत्तर दिया !
जीवन मे ये ध्यान रखना कि जो भी कुछ हम कर्म संचित करके लाये हैं हम अपने वर्तमान के शुभ व अशुभ कर्म से बदलते रहते हैं और उनका परिणाम भी कम या ज्यादा होता रहता है ! इसीलिए जब भी कर्म करो तो शुभ कर्म ही करो जिससे कि अशुभ कर्म अगर पहले किये हुए भी हो तो उनका दबाब घटता रहे और शुभ कर्मो का प्रभाव बढ़ता रहे !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी “कर्म कैसे करें” मे  

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