मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Wednesday 2 May 2012

बंटवारा


दो भाई एक साथ रहते थे! एक भाई खेत मे कृषि कार्य करता था !दूसरा भाई दुकान  मे बैठता था ! वह दूकान से आते समय बाजार से कुछ मिठाई आदि लाता और अपने व भाई के बेटे को बराबर खिला देता ! जो किसान खेती करता था वह ये सोचकर खुश होता –भाई ! कितना अच्छा है ,तटस्थ है ! कहीं कोई पक्षपात नही करता ! अपने भाई के लड़के को भी समान प्यार देता है ! दो भाइयों के इस सुखी परिवार को देख लोग इर्ष्या करते ! कुछ लोग छोटे भाई से कहते –तुम दिन भर खेती करते हो ,महनत करते हो ,हल जोतना ,खाद आदि देना ,कितना श्रम का कार्य है ! तुम्हारा बड़ा भाई दूकान मे मसन्द के सहारे दिन भर बैठा रहता है ! आराम का जीवन जीता है ! तुम ऐसा करो –जमीन और दूकान का विभाग कर लो ! उसे अपने आप हल जोतना पड़ेगा ! छोटे भाई ने मुस्कुराते हुए कहा –तुम्हारी सलाह तो सही है ,अभी इसका उचित समय नही आया है !
अनेक वर्ष बीत गए ! एक दिन संध्या के समय बड़ा भाई दूकान से लौटा ! उसके हाथ मे दो लड्डू थे ! दायें हाथ मे जो लड्डू था ,वह कुछ बड़ा था और बाएं हाथ मे जो लड्डू था वह कुछ छोटा था ! योग ऐसा मिला कि दायें हाथ की ओर किसान का लड़का था और बाएं हाथ की ओर उसका अपना बेटा ! पक्षपात की किरण जाग गई ! उसने दायें हाथ का लड्डू को अपने लड़के की ओर कर दिया और बाएं हाथ मे जो लड्डू था छोटा वाला ,उसे भाई के बेटे को दे दिया !
किसान भाई ने देखा –भाई साहब की नियत बदल गई है ! तटस्थता और समानता की बात समाप्त हो गई है ! वह तत्काल बड़े भाई के पास गया ,बोला –अब बंटवारे का समय आ गया है ! हमे साथ नही रहना है ! जमीन जायदाद का विभाजन हो गया !
जहाँ पक्षपात होता है ,वहाँ बंटवारा हो जाता है !

जहाँ विषमता है ,वहाँ गुणों को भी स्थान मिल जाता है और दोषों को भी स्थान मिल जाता है !
भगवान आदिनाथ वीतरागी बन गए ! उन्होंने केवल समता और तटस्थता को आश्रय दिया ! जहाँ समता है ,वहाँ सारे गुण आ जाते हैं ! उन गुणों से आपकी आत्मा का कण - कण आपूरित हो उठा ,दोषों के लिए कहीं कोई अवकाश नही रहा 
आचार्य  श्री महाप्रज्ञ जी "अन्तस्तल का स्पर्श' में

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