मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Friday 25 May 2012

शोक,ताप ,आक्रंदन ,प्रतिवेदन


शोक –हितैषी व्यक्ति से अपना किसी कारण से जब विच्छेद हो जाता है ,तब भीतर ही भीतर उस मोह की वजह से और हमारे अंदर जो पीड़ा उत्पन्न होती है ,जो दुःख होता है उसे शोक का नाम दिया गया है ! ऐसे क्षण जीवन मे आते हैं तो सावधानी रखें ,नही तो अपने जीवन मे ये जो शोक किसी पुरानी वजह से आया है पर आगे का इंतजाम और कर लेगा !
ताप –किसी को भी कठोर वचन नही बोलना ,क्योंकि किसी के भी कठोर वचन सुनकर मन मे भीतर ही भीतर जो एक जलन उत्पन्न होती है वो कहलाता है ताप ! उसको संताप भी कहते हैं !
आक्रंदन –जब सहन नही होता भीतर का दुःख ,तब हम जोर जोर से आँसू बहाते हुए क्रंदन करने लगते हैं ,रोने लगते हैं वो आक्रन्दन है ! ये आक्रन्दन भी हमारे आगामी असाता के बंध का कारण है ! ये ध्यान रखना ! हमारे असाता का इंतजाम हम इसी तरह से करते हैं ! किसी और को भी हम इसी तरह रुलाते हैं ,किसी और के भी संताप मे कारण बनते हैं तब भी हम अपने ही असाता का बंध करते हैं ! इस सबमे हमें बहुत सावधानी की आवश्यकता है !
प्रतिवेदन –जिन्दगी भर जिसका ख्याल नही किया ,जिनके गुण नही गाये उनके मरने पर ,उसका गुणगान करना ये प्रतिवेदन कहलाता है ! ऐसा भी करते हैं हम ,जीवन भर जिनकी निंदा की हो ,जिनके गुणों की ओर ध्यान न दिया हो ,उनके मरने के बाद उनके गुणों को याद कर कर के हम रोते हैं तब हम और नए दुःख का इंतजाम करते हैं !
ये कारण आचार्य भगवंतों ने दुःख के बताए हैं और कोई बाहरी कारण नही है ! ये मेरी अपनी भाव दशा ही मेरे दुःख का कारण बनती है !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें” से संपादित अंश  

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