मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Thursday 3 May 2012

डर क्यों ?


एक राजा जंगल मे घूमने निकला ! अंगरक्षकों के अश्व पीछे रह गए ! राजा अकेला आगे निकल गया ! कुछ दूरी पर एक चरवाहा दिखाई दिया ! चरवाहे ने देखा –अरे यह तो राजा है .अकेला कैसे ? उसने सोचा –मुझे राजा की मदद करनी चाहिए ! यह सोच कर वह आगे बढ़ा ! राजा ने चरवाहे को देखा ,सोचा –यह अवश्य ही कोई विरोधी है ,मुझ पर आक्रमण करने आया है ! राजा ने आदमी को नही पहचाना और कल्पना मे एक भय समां गया ! शत्रु का नाश करने के लिए राजा ने तीर धनुष बाण पर चढा लिया !
चरवाहे ने तीव्र स्वर मे कहा –राजन ! मै आपका दुश्मन नही हूँ ! आपका सेवक हूँ !
राजा रुका घोड़े से नीचे उतरा ! चरवाहे ने राजा का अभिवादन किया !
राजा ने कहा –अच्छा हुआ ,तुम बोल गए ! अन्यथा मै तुम्हे मै मार ही देता !
चरवाहा बोला –कृपालु नरेश ! आपमें अनेक विशेषताएं हैं पर व्यक्ति की पहचान नही है !
नरेश ने कहा – तुम क्या कहना चाहते हो ?
चरवाहा बोला –राजन ! देखिये ,मै सैंकडों घोड़ों को चरा रहा हूँ ! इनमे से आपके घोड़े को तत्काल पहचान लेता हूँ ! आप अपने भक्त और नौकर को नही पहचान पाए ! आप यह भी नही पहचान पाए कि यह मेरा सेवक है !
राजा यह कथन सुन कर शर्मिंदा हो गया !
यह समस्या राजा कि ही नही है ,हर व्यक्ति की है ! वह अपने आपको ही नही पहचान रहा है और भय से ग्रस्त हो रहा है ! यदि व्यक्ति अपने जीवन का विश्लेषण करे तो पता चलेगा –काल्पनिक भय कितना है ? यथार्थ भय कितना है ?  वास्तविक भय कम होता है ,संशय ,कल्पना और संदेह्जनित भय ज्यादा होता है !
बहुत आवश्यक है ,अभय की चेतना का विकास ! अभय की चेतना जागती है तो सत्तर अस्सी प्रतिशत दुःख अपने आप समाप्त हो जाता है अधिकतर दुःख कल्पना जनित होते हैं ,वास्तविक नही होते ! आदमी अपनी कल्पना से एक भय बना लेता है और डरता रहता है ! यदि वह अपने वास्तविक स्वरुप को पहचान ले तो काफी सारी समस्याएँ अपने आप ही विलीन हो जाएँ !
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की पुस्तक “अंतस्तल का स्पर्श” से  

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