मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Wednesday 18 July 2012

जग ने कब विश्वास किया


कदम बढाता जिस पथ कर  , खाता तु ठोकर ही ठोकर
सत्य पथ पर जब चला तो , सब ने फिर उपहास किया
जग ने कब विश्वास किया ......

घृणा  द्वेष  की  दीवार , बंद  करती  सुख का द्वार
फिर भी उसमे तु रच पच कर ,मृग तृष्णा सम आस किया
जग ने कब विश्वास किया ....

चमन के फूलों की भान्ति  , खोल  दे तु पांति पांति
झूठे सपनों में खुश होकर ,अपने को ही निराश किया
जग ने कब विश्वास किया ......

दुःख सागर से पार होओगे ,त्याग बीज को जब बोओगे
सद्गुरु  ने जग को ऐसा , अनुभव  से विश्वास किया
जग ने कब विश्वास किया ....
मुनिश्री 108 सौरभ सागर जी महाराज “सृजन के द्वार पर” में

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