मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Monday 30 July 2012

कर्मों ने नाही बक्षा .......जैसा करोगे वैसा पाओगे


इस कथानक को लंबी कहानी समझ कर छोड़ने की भूल ना करें ! कर्म सिद्धान्त के ऊपर दिया गया आचार्य श्री 108 गुप्निनंदी जी के जुलाई 2012 पांच दिवस के सायंकालीन प्रवचन श्रृंखला से ! जैन दर्शन ऐसे कर्म सिद्धान्त के दृश्टानों से भरा हुआ है ! पसन्द आने पर इसे कृपया अपनी प्रोफाइल पर share करेंगें तो मेरा लेखन सार्थक हो सकेगा ! जो कुछ भूल लेखन में हुई हों उसके लिए मै क्षमा प्रार्थी हूँ !

कर्मों ने नाही बक्षा .......जैसा करोगे वैसा पाओगे 

किसी समय कुन्थल नाम के एक देश में वसुमित्र  नाम का एक सेठ रहता था ! उसके यहाँ एक धनदत्त नाम का ग्वाला रहता था जो पशुओं को नित्य प्रति जंगल में ले जाता ,चारा वगैरह खिलाता और स्वयं मस्ती में घूमता फिरता था ! पास ही एक तालाब था जिसमे वह स्नान कर लेता था !
एक दिवस तालाब में स्नान करके निकलते हुए उसने एक अचम्भा देखा ! कुछ दूरी पर उसे एक विशेष कमल दिखाई दिया  जिसे विशेष देखने पर उसे मालूम हुआ कि उसकी असंख्य पंखुडियां थी ! वह सहस्रदल कमल था ! जिसकी कि एक हजार पंखुडियां होती हैं ! इतना सुन्दर कमल देखकर उस ग्वाले का मन ललचाया और नजदीक पहुंचकर कमल को हाथ में ले लिया !
उसके हाथ में कमल जाते ही आकशवाणी हुई –बिना पूछे कमल ग्रहण किया है तुमने ! जानते हो तुम ,यह अति विशिष्ट कमल है  ? मै चहुँ तो तुम्हे भस्म कर सकती हूँ ,पर तुम्हारी सरलता को देखते हुए तुम्हे ये आदेश देती हूँ कि जो सँसार में सर्वश्रेष्ठ है ,उसे जाकर तुम यह कमल भेंट करो !  
बेचारा सीधा –साधा ,उसकी दुनिया सेठ से ही शुरू होती थी और सेठ पर ही जाकर खतम हो जाती थी !उसके लिए तो सँसार में वही सबसे श्रेष्ठ था ! वह जल्दी जल्दी में घर गया और वसुमित्र सेठ को सारी बात बतायी और कहा यह कमल आप स्वीकार करें और मुझे छुटटी दें !
वसुमित्र ने कहा –मेरे से श्रेष्ठ तो राजा हैं और वही इस कमल के असली हकदार हो सकते हैं ! नगर का राजा बड़ा बुद्धिमान था ,लेकिन वह भी उस कमल को देख कर चकरा गया ! उसने भी शायद पहले सहस्रदल कमल नहीं देखा था ! प्रश्न खड़ा हो गया ? अब क्या करें ? किसके पास जाएँ ?
राजा ने कुछ सोच विचार करके कहा –हमारे नगर के पास उद्यान में मुनिराज का आगमन हुआ है ,मेरी नजर में उनसे श्रेष्ठ व्यक्ति कोई नहीं है जिसे ये कमल भेंट किया जाए अत: हम सब मिलकर उनके ही पास चलते हैं और तुम अपने ही कर  कमलों से इस कमल को उन्हें भेंट करना !
मुनिराज के पास पहुंचकर सभी ने उन्हें यथोचित प्रणाम किया और सारा दृष्टांत बता कर ये निवेदन किया कि हे मुनिराज यह विशेष कमल हम आपके चरणों में समर्पित करने आये हैं ! मुनिराज ने कहा ,अगर कोई जगत में सर्वश्रेष्ठ है तो वह वीतरागी भगवान ही हैं ,जिन्होंने अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर ली है ,राग और द्वेष को जिन्होंने जीत लिया है ,क्रोध ,मान ,माया और लोभ रुपी शत्रुओं का जिन्होंने जड से नाश कर दिया है अर्थात जीत लिया है ऐसे जिनेन्द्र देव ही सर्वश्रेष्ठ हैं अत: तुम यह सहस्रदल कमल आकाशवाणी के कहे अनुसार जिनेन्द्र देव के चरणों में ही अर्पित करो ! ग्वाला मुनिराज के कहे अनुसार जिनेन्द्र देव के मन्दिर में पहुंचा और जिनबिम्ब के समक्ष वह सुन्दर सहस्रदल कमल चढा दिया !
 कुछ समय पश्चात वह ग्वाला जिनधर्म के श्रद्धान के फल से नमोकार मन्त्र को जप करते हुए मरण को प्राप्त हुआ मरकर के चम्पापुर के महाराजा दन्तिवाहन की महारानी पद्मावती के गर्भ में आया ! महारानी को गर्भ धारण के कुछ समय बाद  ये स्वपन आया कि मै सफ़ेद ऐरावत हाथी पर पुरुष वेष में सवार होकर शोभायात्रा में चलूँ ,राजा को कहा तो राजा ने शोभायात्रा की व्यवस्था कर दी ! बीच रास्ते में ही वह ऐरावत हाथी पागल हो गया और राजा तो वृख की टहनी पकड़ कर उतर गया ,लेकिन इतने में ही रानी को लेकर वह हाथी बहुत दूर निकल गया और बीच तालाब में ले गया ! रानी को गर्भस्थ शिशु के पुण्य से नमोकार की आराधना से चक्रेश्वरी देवी ने आकर विशेष रूप से रक्षा की ! बियाबान जंगल में रानी अकेली अपने कर्मों के फल को भोगती हुई फल खाकर अपना समय व्यतीत करने लगी ! जंगल में ही उसे एक माली मिला ,वह उसकी दशा देकर उसे कहने लगा कि बहन आप मेरे साथ चलिए – इस दशा में आप कैसे अकेली अपने जीवन का निर्वहन कर सकती हैं ! कुछ दिन माली के पास रहने पर वह रानी मालिन को अखरने लगी –पहले खाने वाले दो थे ,अब तीन हो गये थे और इसी कारण से वह रानी से रुष्ट रहने लगी थी !
रानी माली के बाहर जाने पर वहाँ से चुपचाप निकल पड़ी और एक शमशान में जाकर रहने लगी ! शमशान में ही निवास करते हुए रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया ! वहाँ से विहार करते हुए रानी को मुनिराज के दर्शन हुए व रानी ने अपने पुत्र को एक वयोवृद्ध को सौंपकर क्षुल्लिका जी से दीक्षा दिलवाने के लिए अनुरोध किया !
रानी के अनुरोध पर क्षुल्लिका ने मुनिराज से पूछा –मुनिराज  ऐसे रानी ने कौन से कर्म किये जिनके प्रभाव से इसे  रानी होकर भी इतना कष्ट उठाने पड़ रहे हैं ! मुनिराज ने कहा –हे रानी ! तुम्हारा अभी दीक्षा लेने का समय नहीं आया है और तुने अपनी पिछली पर्याय में किसी के कहने पर  तीन बार जिन  धर्म को ग्रहण करके छोड़ा था ,इसी कारण से तुझे इतने कष्ट उठाने पड़ रहे हैं और इसी कारण से तुझे जन्म लेते ही तुझे तेरे माता पिता का वियोग सहना पड़ा ,राज रानी होने के बाद भी तुझे अपने पति का वियोग सहना पड़ रहा है और पुत्र होने के बाद तुझे पुत्र के बिना ही अपना जीवन यापन करना पड़ेगा ,लेकिन तेरे कर्म काट जाने पर तेरा पुन: अपने पति व पुत्र से मिलन होगा व तेरा पुत्र भी महान राजा बनेगा !
वयोवृद्ध रानी के पुत्र को जो लेकर गया था उसने अपने घर ले जाकर उसका नाम “करकंडू” रख दिया ! करकंडू नाम के पीछे एक कारण ये था कि कर यानि हाथ और कंडू यानि खुजली ,उस बच्चे को जन्म से ही हाथ में खुजली की बीमारी थी इसी कारण से ऐसा किया था !
कुछ समय बाद मुनिराज उस नगर में विहार करते हुए निकले और उस बच्चे क देख कर उन्होंने भविष्यवाणी  की कि यह बालक एक दिन महान राजा बनेगा ! सुनकर उस बच्चे के पालनकर्ता आश्चर्यचकित थे !
कुछ समय के पश्चात हस्तिनापुर के राजा  बल की मृत्यु हो गयी और उसके मंत्रियों ने ये निर्णय लिया कि महाराज के हाथी को नगर में छोड़ दिया जाए और जिस व्यक्ति के गले में वह माला डाले उसे राज्य का अभिषेक कर दिया जाए ! हाथी ने जाकर उस युवक का जलाभिषेक किया व फूलमाला उस के गले में डाल दी व उसे मंत्रियों द्वारा राजा घोषित कर दिया गया !  भाग्योदय से उस का अपनी माता पदमावती से भी मिलन हो गया और उसकी कीर्ति दूर दूर तक फैलने लगी ! उसकी कीर्ति राजा दन्तिवाहन से सहन न हुई व वह अपनी सेना सहित हस्तिनापुर पर आक्रमण करने के लिए आ खड़ा हुआ ! रानी के पहचानने पर बीच बचाव कने पर युद्ध ताल गया व पिता पुत्र का मिलन हुआ !
कुछ दिनों के उपरान्त राज्य में अव्धिग्यानी मुनिराज का आगमन हुआ और राजा करकंडू ने मुनिराज के समक्ष जाकर अपने पूर्व में किये हुए कर्मों के बारे में पूछा –कि हे मुनिराज ! मैंने पूर्व पर्याय में ऐसा कौन सा पुण्य किया था जिसके कारण मुझे यह राजा का पद प्राप्त हुआ और कौन सा ऐसा पाप किया था कि यह हाथ में रोग हुआ !
मुनिराज ने अपने ज्ञान का प्रयोग करके उत्तर दिए –कि राजन ! तुने पिछले भव में ग्वाले की पर्याय में एक सुन्दर सहस्रदल कमल भाव भक्ति से जिनेन्द्र देव को चढ़ाया था उसके फल से तुझे ये राजा का पद प्राप्त हुआ लेकिन तुझे पता है कि कमल जिसे पंकज भी कहते हैं –पंकज यानि जो पंक (कीचड़) में खिलता है उसे पंकज कहते हैं ,कमल को चढाते हुए तेरे हाथों में वह कीचड़ लगा हुआ था ,उसी के दोष से तुझे यह हाथ का रोग हुआ है !
कर्मों की गति बड़ी ही निराली है ,कर्मों ने किसी को नहीं छोड़ा , इसलिए कहा गया है कि हम अपने कर्म करते हुए प्रतिपल ये ध्यान रखें कि हमारे जीवन में हमारे द्वारा किसी जीव का अहित न हो ! जो भी कार्य करें शुद्धि पूर्वक करें और श्रद्धान पूर्वक करें तब ही हमारा नर जन्म सार्थक हो पायेगा !
आचार्य श्री 108 गुप्तिनंदी जी गुरुदेव के सायंकालीन प्रवचन श्रंखला से

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