मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Tuesday 24 July 2012

निज में निज को


निज में निज को
नजर रखो तुम उस तरफ भी ,
जो दुःख को हमें दिलाती है ,
शंका  न करो हे  मन मेरे ,
यह  मोह हमें भटकाती है !!

तेरे  नयनों के सामने  में तो ,
छाया है  अज्ञान अंधियारा ,
जिसके कारण हे मन तुमको ,
दीखता न है भव का किनारा !!

कर्ज चुकाओ तप करके तुम ,
जो अनादि से लिया हुआ
दीप जलाओ अन्तस् में तुम,
जो अनादि से बुझा हुआ !!

एक दिवस को आया यहाँ पर ,
एक   दिवस   में   जाएगा
धन वैभव को छोड़ अरे नर ,
क्या इसको लेकर जाएगा !!

फूलों को तुम  दूर  फैंककर ,
शूलों से क्यों नाता जोड़े
दुविधा भ्रम संशय में फंसकर,
संयम  से क्यों नाता तोड़े !!

मुख मोडो सब जग झंझट से ,
आलोकित कर लो निज को
शान्ति सुधा तुम पाओगे फिर,
जब पालोगे निज में निज को!!

हे मन निज में निज को ढूँढो ,
निज सत्ता को जल्दी पाओ
मोह शत्रु को जीत के हे मन,
मुक्ति रमा में रम जाओ !!  

मुनिश्री 108 सौरभ सागर जी महाराज “सृजन के द्वार पर” में

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