मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Wednesday 29 August 2012

आचार व्यवहार का चमत्कार


आचार व्यवहार  का चमत्कार
गांधी जी के जीवन की एक घटना है ,वे जब इंग्लैंड में थे तो एक पादरी ने सोचा कि यदि मै गांधी को यीशु का भक्त बना दूँ ,अर्थात इसाई बना दूँ तो हिन्दुस्तान में लाखों लोग अपने आप ही इसाई बन जायेंगे ! पादरी ने गांधी जी को संपर्क किया और अनुरोध किया कि आप धर्म चर्चा के लिए प्रति रविवार को मेरे निवास पर पधारें ताकि कुछ समय हम बैठ कर धर्म चर्चा कर सकें ! गांधी जी ने सहर्ष उनका यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया ! रविवार को पादरी ने उनके लिए निरामिष भोजन (अर्थात शुद्ध शाकाहारी भोजन) की व्यवस्था कर दी !
पादरी के बेटों ने यह सब देख कर कहा –पिताजी यह सब क्या हो रहा है ,और किसलिए ?
मेरा मित्र गांधी हिन्दुस्तानी है ,वह मांस नहीं खाता ! इसीलिए शाकाहारी भोजन की व्यवस्था की है –पादरी ने व्यंग्य से कहा !
गांधी मांस क्यों नहीं खाता ? बच्चों ने आश्चर्य से पूछा !
वह कहता है कि जैसे हम सब में प्राण हैं वैसे ही प्राण पशु पक्षियों में भी हैं इसीलिए जैसा कोई हमें मारकर खाए तो हमें दर्द का अहसास होगा ,वैसा ही दर्द का अहसास उन्हें भी होता है –पादरी ने फिर व्यंग्य से कटाक्ष किया !आखिर हिन्दुस्तानी जो है ..........
बच्चों पर पादरी के कथन की प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई ! वे बोले –पिताजी ! यह तो अच्छी बात है ,हमें भी मांस नहीं खाना चाहिये !
बेटा यह तो उनके धर्म की बात है ,हमारे धर्म की नहीं –पादरी ने उपेक्षा से कहा !बच्चे उसका मुहँ देखते रह गये ! उनके मन में कौतुहल उठा –“अच्छी बात तो किसी भी धर्म की हो माननी ही चाहिये” !
गांधी जी हर रविवार को आते ! धार्मिक चर्चाएँ होती ! कभी कभी बच्चे भी उसे सुन लेते ! गांधीजी का मधुर करुणामयी व सभ्य व्यवहार ,शांत व प्रेम से ओतप्रोत चेहरा बच्चों के ह्रदय को  अनायास ही अपनी ओर खींचने लगा ! एक दिन बच्चों ने पादरी से कहा –पिताजी ! गांधीजी के धर्म की बातें हमें अच्छी लगी है , आज से हम भी मांस नहीं खायेंगें !
पादरी के पैरों के नीचे से जमीन खिसकने लगी ! मै  गांधी को इसाई बनाना चाहता था ,यहाँ तो मेरे अपने बच्चे ही हिंदू बनने लगे हैं !
अगले रविवार को जब गांधीजी आये तब भोजन के उपरान्त पादरी ने कहा –मै आज से अपना निमंत्रण वापस लेता हूँ !
गांधीजी मधुर मुस्कान के साथ पादरी की आँखों में झाँकने लगे !पादरी झुंझला कर बोला –मिस्टर गांधी ! मै हिन्दुस्तान के कल्याण के लिए तुम्हे इसाई बनाना चाहता था .यहाँ तो तुम मेरे ही बेटों पर हमला बोलने लगे हो ! यह मुझे बर्दाश्त नहीं हो सकता !
गांधीजी उसकी मूर्खता पर मन ही मन हँस रहे थे ,वह धोखे से अपना धर्म फैलाना चाहता था ,यहाँ गांधी जी अपने जीवन से ही धर्म का पाठ पढ़ा रहे थे !
जो धर्म का आचरण नहीं करता ,वह जीवन भर धर्म चर्चा करके भी उसके रस को नहीं जान पाता ,जैसे चम्मच दाल का स्वाद नहीं जान पाती !किन्तु जो धर्म का आचरण करता है ,वह धर्म का स्वाद क्षण भर में ही पहचान  लेता है जैसे जीभ दाल का स्वाद तुरंत जान लेती है ! 
शास्त्रों के हजार उपदेश से आचार का एक चरण श्रेष्ठ होता है ,उपदेश और चर्चा से धर्म का वास्तविक सौंदर्य ढक जाता है ,किन्तु चरित्र में वह सम्पूर्ण तेजस्विता के साथ प्रकट हो जाता है !

No comments:

Post a Comment