जब सत्याग्रह हो रहा था तो गांधीजी के नेतृत्व में सब सत्याग्रहियों
के लिए एक बुढा बाबा रेल के डिब्बे में चढ कर पैसे इकठ्ठे कर रहा था ! एक खुले
कनस्तर में ,उसके अंदर जो जितना देता उतना डाल देता उसी में रसीद भी रखी थी ,जो
जितना दे अपने आप उतने रुपए की रसीद बना ले ,बूढ़े बाबा को ज्यादा दीखता नहीं था
इसीलिए कहता अपने हाथ से लिख लो कितने
रूपये सत्याग्रहियों को दिये ,दो रूपये दिये ,पांच रूपये या दस जितने दिये उतने की
रसीद बना लो खुद ही ! एक चोर ने देख लिया कि ये तो बढ़िया चीज है ,इतने सारे कनस्तर
में पैसे अपने आप एक मिनट में मिल जायेंगे ! बस थोडा सा धक्का भर देना है बूढ़े को
! उसको ये मालूम नहीं था ये पैसे किसलिए ले रहा है बुढा ! उसको तो क्या देर लगनी
थी , बाबा जरा सा इधर उधर हुए कि उठाया कनस्तर और फुर्र हो लिया, उतर गया ट्रेन से
! अब उसने जाकर के देखा ये पैसे तो सत्याग्रहियों के लिए इकठ्ठे कर रहा था वो तो
वह पानी पानी हो गया ! मन में बड़ा कचोट हुई ,अरे ये तो मैंने इतना भले काम में रूकावट डाल दी ! मुझे तो कुछ रुपए मिल
जायेंगे पर इतना बड़ा कार्य ही रुक जाएगा ! अब क्या करूँ ? संभल गया जैसे तैसे करके
उसी ट्रेन को दोबारा पा लिया ! डिब्बे को ढूँढकर उस बाबा के पास जाकर उस कनस्तर को
ज्यो का त्यों रख दिया और उस दिन जो भी कुछ चोरी चकारी से जो कुछ प्राप्त किया था
वो भी उस कनस्तर में डाल दिया !
आगे से कान पकडे कि अब से चोरी नहीं करूँगा ! कभी कभी जीवन में ऐसा
अवसर आता है कि कोई कार्य हो जाता है ,भला कार्य कि जिससे हमारे जीवन के सारे बुरे
कर्म नष्ट हो सकते हैं !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें” से सम्पादित अंश
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