मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Saturday 2 June 2012

आसक्ति हमें सुख दुःख देती है,


एक नौकर काम करता था सेठजी के यहाँ पर !  एक दिन सफाई सफाई करते हुए उससे सेठजी की घडी गिर कर टूट गयी ! उसको लगा कि अब तो मामला गडबड है ! क्या होगा ? सेठजी नाराज होंगे और हो सकता है मेरी तनख्वाह मे से पैसे काट लें ! शाम को सेठजी आए तो उनसे कह दिया कि वो घडी मेरे हाथ से गिरकर टूट गयी ! सेठ जी ने कहा –अब ठीक है आगे थोडा सावधानी से काम किया करो और सुनो वैसे तो कोई विशेष बात नही है ,लेकिन तुम्हे नही मालूम इस घडी के साथ मेरा बड़ा पुराना रिश्ता था ,मुझे ये अपने ब्याह के समय मिली थी और मुझे इससे बड़ा लगाव था ! खैर अब टूट ही गयी है तो कोई बात नही पर सुनो मै ये सोच रहा था कि ये नही टूटती तो ये मै तेरे को दे देता !

अब नौकर को दिन भर से घडी टूटने का उतना दर्द नही था जितना कि इस बात को सुनकर कि ये घडी मुझे मिल सकती थी और टूट गयी ! अब दुःख शुरू हो गया ! अभी तक नौकर को इसका दुःख नही था कि घडी टूट गयी ,इसका दुःख था कि कहीं सेठजी मेरी पगार से पैसे न काट लें ,इसका दुःख था ! अब घडी टूटने का दुःख इसीलिए शुरू हो गया कि ये मुझे मिल सकती थी और टूट गयी ! घडी दुःख नही दे रही ! वह देती तो जब टूटी थी तब देना चाहिये था ! वो मेरी है और टूट जाए फिर दुःख देती है !

हमारा अपना ममत्व हमारी अपनी आसक्ति हमें सुख दुःख देती है, जिस व्यक्ति का ममत्व बहुत है ,आसक्ति बहुत है ,बताइये उसे दुःख ही दुःख नही मिलेगा तो क्या मिलेगा !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें”  से सम्पादित अंश

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