मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Monday 18 June 2012

उपहास


एक आदमी चला जा रहा था ! अचानक एक पत्थर उसके पैरों से टकराकर पास खड़े गुलाब के पौधे से जा लगा ! गुलाब के फुल ने उसकी यह दशा देखी तो व्यंग्य से हँस पड़ा और उपहास मिश्रित शब्दों में पत्थर को घूरते हुए कहा –हूँ ........ये भी कोई जिन्दगी है ......सिर्फ ठोकर !
पत्थर अपनी स्थिति को जानता था उसने फुल के यह शब्द सुने तो मर्माहत हो उठा , बोला कुछ नहीं !
कुछ समय बाद एक दूसरा आदमी उधर से गुजरा ! उसने पत्थर में छिपी संभवनाओं को एक क्षण में ही जान लिया ! मूर्तिकार जो था ! घर ले आया और तराशना शुरू कर दिया ! कुछ ही समय में एक सुन्दर प्रतिमा बनाकर अपने पूजाघर में विराजमान कर दिया !
अगले दिन उसने उस प्रतिमा की पहली पूजा की ! पहली पूजा में उसने जो फुल अर्पित किया वह वही था ,जो कल तक इसी पत्थर का उपहास कर रहा था ! उसने पत्थर का यह रूप देखा तो शर्म से झुक गया ! प्रतिमा खड़ी खड़ी मुस्कुरा रही थी !
हर व्यक्ति पत्थर की तरह अपने अंदर की भगवत्ता को प्रकट कर सकता है ! अभिमान ही करना है तो भीतर बैठी भगवत्ता का करो ! जिनसे प्रत्येक सत्ता में विराजमान भगवत्ता को जां लिया ,वह अभिमान कर ही नहीं सकता ! 
मुनिश्री 108  प्रमाण सागर जी “धर्म जीवन का आधार” से संपादित अंश

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