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Wednesday 13 June 2012

कर्मों से खोया है ,कर्मों से ही पाया है


चमरी गाय की अपनी सुन्दर सी पूछ एक बार झाडी में अटक जाए तो कई दिन खड़ी रहेंगी जब तक कि सुलझ न जाए ,मर जायेगी वहीँ पर ,प्राण दे देगी पर क्योंकि पूंछ से बड़ा प्यार होता है उसे ! एक बाल अटक गया है झाडी में उसे बड़ा दुःख होता है ! अपने ही घात करने वाला शरीर हमें मिल जाता है कई बार और दुसरे के घात करने वाला शरीर जैसे कि सिंह का ,दुसरे के घात करने के लिए ये नख ,ये सब कैसे होता होगा ? हमारे अपने मन .वाणी और शरीर की क्रियाओं से होता है ,वे शुभ होती हैं तो सारी चीजें शुभ मिल जाती हैं और वे अशुभ होती हैं सारी चीजे हमारे हिस्से में अशुभ आती हैं !
अभी तो सारी चीजें अच्छी मिल जाने पर भी हम तैय्यारी बुरे की कर रहे हैं अगर गौर से देखा जाए तो,अपने मन वाणी और शरीर को बिगाड़ करके और आगे के लिए इनकी जो सामर्थ्य है उसको बुरा ही बनाने की कोशिश में हैं !
हमने अपने जीवन में जो भी पाया और जो भी खोया है वो अपने कर्मों से ही पाया है और कर्मों से ही खोया है!
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें”  से सम्पादित अंश

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