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Monday 4 June 2012

सबसे कठिन काम कौन सा है ?


महर्षि  अरविन्द के पास एक दिन एक फ़्रांसिसी युवक आया |युवक मन का सरल पर स्वभाव से उग्र था | उसके ह्रदय मे हमेशा क्रोध का तूफान मचा रहता था |एक दिन महर्षि अरविन्द ने उससे कहा-“जरा सोच कर बताओ ,तुम जैसे हृष्ट-पुष्ट लड़के के लिए सबसे कठिन काम कौन सा है ?थप्पड़ के बदले थप्पड़ लगाना या मारने वाले साथी पर जबाबी हमला करना, अथवा उसी समय अपनी मुट्टी को जेब मे डाल लेना |”
       युवक बोला –“अपनी मुट्टी को जेब मे डालना |”
       महर्षि बोले –“तुम जैसे तेजस्वी युवक के लिए सरल काम उचित है या कठिन”?कुछ क्षण सोचकर युवक ने कहा –“ सबसे कठिन काम  करना |” महर्षि ने कहा “बहुत अच्छा ,अब तुम ऐसा ही करने का प्रयत्न करना |”
कुछ दिन बाद वह युवक महर्षि के चरणों मे आया और प्रसन्नता पूर्वक कहा “मै सबसे कठिन काम करने में सफल हो गया हूँ |”
     महर्षि ने पूछा –‘वह कैसे’?वह बोला –“कारखाने में मेरे साथ काम करने वाले एक युवक ने जो अपने बुरे स्वाभाव के लिए प्रसिद्ध है,क्रोध में आकर मुझे पीटा |क्योंकि वह जानता था कि मैं साधारणतया क्षमा नहीं करता मुझ में ताकत भी है,अत: वह अपनी रक्षा के लिए तैयार हो गया |ठीक उसी समय मुझे आपकी बात याद आ गयी| वैसा करना मुझे कठिन लगा फिर भी मैने अपनी मुठ्ठी जेब में डाल ही ली |जैसे ही मैंने ऐसा किया,मेरा गुस्सा न जाने कहाँ गायब हो गया |उसका स्थान साथी के प्रति दया ने ले लिया |मैंने तब अपना हाथ साथी की ओर बढ़ाया,एक क्षण को वह मुझे देखता रहा,एक शब्द भी बोल न सका |फिर शीघ्रता से मेरे हाथ की ओर लपका ओर द्रवीभूत होकर कहा –“आज से तुम मुझसे जो चाहो करा सकते हो |अब मैं तुम्हारा मित्र बन गया हूँ |”
      क्षमा के विषय में कहा गया है –‘सत्यपि प्रतिकार सामर्थ्येSपकार संहन क्षमा’|प्रतिकार करने की सामर्थ्य होते
 हुए भी दूसरे के अपकार को सहन करना वास्तविक क्षमा है |उदार दृष्टी ओर सकारात्मक सोच वाले   व्यक्ति ही
इसे धारण कर सकते है | सत्ता , शक्ति और प्रभुता से संपन्न होने के बाद भी अपने अपकारी के प्रति क्षमाभाव बनाये रखना महात्मा का लक्षण है |छोटी –छोटी बातों में उद्विग्न्न और विचलित होना उथली मानसिकता की पहिचान है |सच्चे साधक विषमतम परिस्थितियों में भी उद्विग्न्न नहीं होते | उनकी समता खण्डित नहीं होती |वे हर परिस्थिति में समता और क्षमा की प्रतिमूर्ति बने रहते हैं | 

मुनिश्री 108 प्रमाण सागर जी “धर्म जीवन का आधार” से

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