मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Saturday 16 June 2012

प्रतिशोध


एक साधु नाव पर यात्रा कर रहे थे |नाव पर कुछ युवक भी सवार थे |युवकों को मजाक सूझा |उन्होंने साधू महाराज की हँसी उड़ाना शुरू कर दी |साधू सच्चे साधु थे |उन्होंने अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं की |युवकों ने साधु की समता को उनकी कमजोरी समझा |वे एकदम उद्दण्डता पर उत्तर आये|पर साधु महाराज पूर्णत: अविचलित रहे |
     सन्त कहते हैं-साधुओं का स्वभाव चन्दन की भान्ति होता है जो जलाये जाने पर भी सुगन्ध प्रदान करता है| एक युवक ने साधु महाराज को नदी में ढकेलना चाहा कि तभी जल देवता प्रकट हो गये |जल देवता ने साधु महाराज से निवेदन करते हुए कहा –“महाराज ! इन दुष्टों ने आपके साथ दुर्व्यवहार  किया है ,मै अभी नाव पलट कर  इनको सबक सिखाता हूँ ! सन्त ने तुरंत देवता को रोकते हुए कहा –नहीं नहीं ,ऐसा मत करो ,नाव पलटने से क्या होगा ? पलटना ही है तो इनकी बुद्धि पलट दो !
सन्त कि वाणी सुनकर सारे युवक पानी –पानी हो गये ! सभी उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे ! घमण्ड में चूर होकर जिन्होंने तुम्हे हानि पहुंचाई है ,तुम उन्हें अपने क्षमा व्यवहार से जीत लो ! 

मुनिश्री 108  प्रमाण सागर जी “धर्म जीवन का आधार” से संपादित अंश

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