मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Monday 11 June 2012

“To err is human ,To confess is divine”


एक छोटी सी घटना है ! बहेलिये ने जाल बिछाया और एक कबूतरी उसमे फंस गयी ! अब फंस गयी वो तो जो कबूतर ऊपर बैठा पेड के ऊपर ,वो भी दुखी और वो कबूतरी फंस गयी वो भी दुखी अब क्या करे ? उसी पेड के नीचे बहेलिये ने अपना डेरा डाल दिया ! कबूतरी ने जाल में बंद होने के बाद भी आवाज दी कबूतर को कि दुर्व्यवहार नहीं करना ! मुझे भले ही पकड़ लिया है ,लेकिन आया है अपने ही पेड की शरण में ,इसीलिए मदद करना ! पता नहीं ऐसा हुआ कि नहीं, मत करें हम विश्वास अपने मन में लेकिन ऐसा भी तो सम्भव है कि ऐसा हुआ हो ! कबूतरी कह रही है और कबूतर ने सुना तो उसका संक्लेश कुछ कम हो गया ! जितने तिनके लाया था घोंसला बनाने के लिए सब इकठ्ठे किये और नीचे गिरा दिये और इतना ही नहीं जब उसे लगा कि कम हैं तो और लाया बटोर कर और ढेर लगा दिया फिर कहीं से जलती लकड़ी उठा कर लाया और उसमे आग लगा दी ,सारी रात ठण्ड में कैसे काटेगा बेचारा ,थोड़ी गर्माहट हो जायेगी और जब नहीं रहा गया तो अपना घोंसला भी गिरा दिया ताकि आग थोड़ी देर और जल सके ! अब क्या करूँ ? मन में दुःख भी है कि कबूतरी की तो जान अब चली ही जायेगी और जब इसकी जान जा रही है तो मेरे जीवन का क्या ,इसी अग्नि में मेरी भी जान चली जाए ,ऐसा सोचकर अग्नि के निकट आने ही वाला था और बहेलिया नीचे बैठा सब देख रहा है उसका मन बदल गया ,फ़ौरन कबूतर को एक तरफ हटाकर के जाल खोल दिया और कबूतरी को उडा  दिया !
“To err is human ,To confess is divine” जहाँ हम गलतियाँ करते हैं वहाँ हम मनुष्य हैं और जहाँ अपनी गलतियों को स्वीकार करके उन्हें संभालने का प्रयास करते हैं वहाँ हमारे भीतर देवत्व आना शुरू हो जाता है ! जहाँ हम गलती करने वाले के प्रति भी मन में सदभाव रखते हैं ! वहाँ से देवत्व की शुरुआत हो जाती है !
उस बहेलिये के बारे में लिखा है कि उसने जीवन भर के लिए फिर जाल में हिंसा करना छोड़ दिया !  छोटी सी घटना उसके जीवन में इतना बड़ा परिवर्तन कर गयी !
अपराधी से अपराधी व्यक्ति के प्रति भी हम अपनी सद्भावना व्यक्त करेंगें तो मानियेगा देवताओं जैसे ऊँचे हो जायेगे ! हमारे जीवन में भी ऐसा परिवर्तन आये और हम भी ऐसी तैय्यारी करें कि जिससे हमारा जीवन अच्छा बन सके ! इसी भावना के साथ !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें”  से सम्पादित अंश

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