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Saturday 15 September 2012

एक छिद्र


एक छिद्र
एक बार तथागत बुद्ध के शिष्य परस्पर चर्चा कर रहे थे –“संसार में कौन सा दुर्गुण मानव को शीघ्र पतन करता हैं ?” किसी ने कहा –“सुरा से मनुष्य शीघ्र नष्ट हो जाता हैं !”
किसी ने कहा –“सुन्दरी ही मानव जाति के पतन का कारण रही हैं!”
तभी एक भिक्षु ने कहा –“सुरा व सुंदरी तभी पतन का कारण बनती है ,जब सम्पति पास में हो”
भिक्षुओं में इस बात को लेकर विवाद खड़ा हो गया ! वे समाधान के लिए तथागत बुद्ध के पास  पहुंचे !
तथागत ने समाधान की भाषा में कहा –“समझो !एक सुखा हुआ तुम्बा है ,उसमे कोई छिद्र नहीं है है ,अगर उसे तुम पानी में डालोगे तो क्या वह पानी में डूबेगा ?”
नहीं भंते –सभी ने एक स्वर में उत्तर दिया !
“यदि उसमे एक ,दो य अनेक छिद्र कर दिये जाएँ तो ......?” तथागत   ने भिक्षुओं की ओर देखा !
“तो भंते !वह डूब जाएगा” –सभी ने फिर से एक स्वर में उत्तर दिया 
“भिक्षुओं ! सुरा सुंदरी और संपत्ति आदि सभी छिद्र हैं ,जैसे एक ही छिद्र तुम्बे को डुबो देता है ,वैसे ही दुर्गुण एक भी क्यों न हो वह जीवन को डुबो देता है ,पतित कर देता है !”
 दुर्गुण जीवन के छिद्र हैं ! एक ही छिद्र नौका को डुबोने के लिए काफी हैं ,वैसे ही जीवन में एक भी  दुर्गुण हो , तो वह व्यक्ति को संसार की यात्रा में मझधार में ही डुबो देता हैं !जैसे –छिद्र वाली नौका उस पार नहीं जा सकती,वैसे ही दुर्गुणों से आक्रांत जीवन अपने लक्ष्य तक नहीं पहुच सकता !
श्री देवेन्द्र मुनि जी की पुस्तक “खिलती कलियाँ मुस्कुराते फूल” से


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