मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Sunday 16 September 2012

अपना मांस ?


मित्रों प्रणाम   नमस्कार  जय जिनेन्द्र  शुभ प्रात:
अपना मांस ?
एक मर्मस्पर्शी ह्रदय हिला देने वाला किस्सा .......कृपया इसे पूरा पढ़ें व मनन चिंतन और जीवन में उतारें ! अगर इस घटना से कुछ सीखें और अपने निजी जीवन में उतारें तभी इसे अपनी प्रोफाइल पर share करें ! वरना मुझे यह मंजूर नहीं ! आपकी कथनी और करनी में कुछ तो सामंजस्य हो !
एक बार मगध नरेश महाराजा श्रेणिक की सभा में कुछ मांस लोलुप सामंतों ने मांस भक्षण के शारारिक व आर्थिक लाभ बताए –मांस जैसा पोष्टिक व सस्ता दूसरा कोई आहार नहीं !
महामंत्री अभयकुमार ने कहा –यह आपका भ्रम है –मांस जैसा महंगा पदार्थ और कुछ है ही नहीं !
महाराज श्रेणिक ने इसके लिए महामंत्री से प्रमाण माँगा ! महामंत्री ने इसके लिए कुछ समय देने की बात कही जो कि राजा द्वारा स्वीकार कर ली गयी !
रात के दुसरे पहर में जब सारा सँसार निद्रा में लीन था ! महामंत्री घबराए हुए एक सामंत के द्वार पर पहुंचे !”भाई,अपने पर बड़ी विपत्ति आ पड़ी है ,महाराज सहसा भयंकर रोग से पीडित हो गये हैं और वैद्यों का कहना है कि किसी मनुष्य के कलेजे का सिर्फ दो तोला मांस चाहिए ! स्वामी की प्राण रक्षा के लिए आप राज भक्ति का परिचय देगें इस उम्मीद से मै आपके द्वार पर आया हूँ !
सामंत के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी !” महामंत्री जी –आप बुद्धिनिधान हैं मुझ पर दया कीजिये ! आप कहीं से भी किसी गरीब व्यक्ति का मांस खरीद सकते हैं ! लाख दो लाख स्वर्ण मुद्राएं जितना भी लगें आपके चरणों में अर्पित हैं” सामंत ने हाथ जोड़ कर कहा !”पर कृपया मुझे जीवन दान दीजिए”कह कर एक लाख स्वर्ण मुद्राएं अभाकुमार के चरणों में रख दी !
लाख स्वर्ण मुद्राएं लेकर महामंत्री ने दुसरे सामंत का द्वार खटखटाया –उसे महाराज की अस्वस्थता और दो तोला मांस की आवश्यकता बतायी ! बदले में एक लाख स्वर्ण मुद्राएं और राज्य की ओर से आपके परिवार के  लिए प्रशस्ति पत्र ! यह कह कर एक लाख स्वर्ण मुद्राएं उसके हाथों में रख दी !
सामंत गिडगिडा कर चरणों में गिर पड़ा ! “महामंत्री –मुझ पर दया कीजिये ! ये दो लाख स्वर्ण मुद्राएं और लीजिए व किसी अनाथ गरीब का मांस खरीद कर महाराजश्री का इलाज करवाइए !”
रात्रि के सघन अंधकार में अभयकुमार विवेक का दीपक लिए अनेक सामंतों के ह्रदय का अन्तर पट –खोल –खोल कर देख आये !लाखों स्वर्ण मुद्राओं का भार लिए लौट आये ,कहीं भी दो तोला मांस न मिला !
दुसरे दिन राजा श्रेणिक राज्यसभा में प्रसन्न मुद्रा में उपस्थित थे ! सामंत भी समय पर राज दरबार में उपस्थित हुए !महामंत्री ने पिछले सप्ताह की घटना के प्रकाश में रात्रि की घटना का रहस्य खोला और स्वर्ण मुद्राएं राज सिंहासन के सामने रखते हुए बोले –महाराज ! दो तोला मांस के लिए बदले में ये लाखों स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हुई हैं ! स्वर्ण मुद्राओं की चमक में सामंतों के मुख मलिन पद गये !
अभयकुमार ने सामंतों के झुके हुए चेहरों को देखते हुए कहा –राजन !सँसार में अपना मांस दुर्लभ है ,कोई लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर भी अपना एक तोला मांस भी नहीं देना चाहता !किन्तु दुसरे का मांस वह कुछ पैसे में खरीद लेते हैं ,इसीलिए वह उन्हें सस्ता लगता है ! यदि दुसरे के मांस की तुलना अपने मांस से करें तो ...........? आज हमारे जैन/वैष्णव समाज मे भी कुछ बंधू चमड़े का प्रयोग करते हैं! क्या राम कृष्ण और माहावीर ने हमें यही सिखाया है ? कम से कम अगर आप मे थोड़ी संवेदना इसे पढकर जागी हो तो चमड़े से बनी वस्तुओं का त्याग करें ! सम्पूर्ण त्याग न कर सकें तो कम से कम प्रयोग की शपथ तो ले ही सकते हैं जिससे बेवजह काटे जा रहे पशुधन की रक्षा हो सके !   
पिछले दिनों की एक घटना स्मरण होती है ,जिसमे एक पोस्ट जिसमे हमारे जिनेन्द्र भगवान के नाम से बूचडखाने का नाम रखने पर सैंकडों व्यक्तियों ने इसका विरोध किया था व उसे अपनी प्रोफाइल (facebook)पर शेयर किया ! मेरा उन सबसे आह्वान है कि इसी क्षण से चमड़े के इस्तेमाल का त्याग करें ! तब उनका ये विरोध और ज्यादा सार्थक होगा !
आधुनिक युरोप के साहित्य शिल्पी जार्ज बर्नाड शा ने एक प्रसंग पर कहा था –“कब्रिस्तान में सिर्फ मुर्दे दफनाए जाते हैं ,किन्तु जो लोग मांस खाते हैं उनके पेट तो सचमुच ज़िंदा प्राणियों के कब्रिस्तान हैं”
‘मांस भक्षण’मनुष्य के मन कि घोर क्रूरता का प्रतीक हैं !जिसके मन में तनिक भी पर –पीड़ा कि अनुभूति है ,वह मांस भक्षण नहीं कर सकता !मनुस्मृति में ‘मांस’ की व्युत्पत्ति करते हुए कहा है –
-मै यहाँ पर जिसका मांस खाता हूँ ,मुझको भी वह (मां-स: )परलोक में खायेगा  ! यह मांस की परिभाषा है !
मनुष्य यदि अपने मांस से दुसरे के मांस की तुलना कर ले तो शायद वह मांस भक्षण की कल्पना से ही सिहर उठे !

    

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