मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Saturday 8 September 2012

काम और नाम


काम और नाम
तक्षशिला में बोधिसत्व नाम के एक साधु अपने पाँच सौ शिष्यों को धर्म व ज्ञान की शिक्षा देते थे ! उनके एक शिष्य का नाम “पापक” था ! एक बार पापक अपने नाम के विषय में सोचता हुआ खिन्न हो उठा –आचार्य के पास आकर निवेदन किया –गुरुवर मुझे आप कोई अच्छा सा नाम दे दीजिए ! सुन्दर नाम से ही सिद्धि मिल सकती है !
आचार्य एक क्षण मुस्कुराए ,कहा –जाओ नगर में जाओ ! जो भी सुन्दर शुभ नाम लगे मै तुम्हे उसी नाम से पुकारूँगा !
पापक घूमता हुआ नगर में जा पहुंचा ! उसने देखा एक जगह शव यात्रा निकल रही थी ! पापक ने साथ चल रहे एक व्यक्ति से पूछा –बंधुवर ! इस मृत व्यक्ति का नाम क्या था ?
शवयात्री ने कहा –“जीवक”
पापक यह सुनकर आश्चर्य में पद गया कि क्या कभी जीवक भी मर सकता है ? इसी उधेड़बुन में वह आगे बढ़ा और कुछ दूर आगे जाने पर उसने एक नारी की नंगी पीठ पर कुछ लोगों को कोड़े मारते हुए देखा ! उसके मन में करुणा की हिलोरें उठने लगी –बोला ! बंधुओं –इस अबला नारी को इस निर्दयता से क्यों पीट रहे हैं आप सब ?
प्रहारक ने सामने ब्रह्मचारी वेष धारी व्यक्ति यानि पापक को देख कर कहा –यह हमारी दासी है ,बड़ी अधर्मिनी है ,दुराचारिणी है ! आज सुबह से ही किसी पुरुष के साथ चली गयी थी ,अब पकड़ में आई है ब्रह्मचारी जी ! अब आप ही बताएं दुराचारी को शिक्षा तो मिलनी ही चाहिए न ?
पापक ने पूछा –इस स्त्री का नाम क्या है ?
 शीलवती –लोगों ने स्त्री को घूरकर देखते हुए कहा !
पापक आश्चर्य चकित सा देखता रह गया –क्या शीलवती भी दुराचारिणी हो सकती है ? पापक का मन खेद खिन्न हो उठा !वह पुन: अपने आश्रम की ओर बढ़ गया ! रास्ते में उसे एक व्यक्ति दिखाई दिया –उसे देखते ही जल्दी से आया और कहने लगा –ब्रह्मचारी जी ,मै रास्ता भटक गया हूँ ,मुझे अमुक नगर में जाना है ,कब से भूखा प्यासा यहाँ बैठा हूँ ! आप मुझे कृपा कर पथ बताएं ! पापक ने उससे पूछा –पथिक ! तुम्हारा नाम क्या है ?
पथिक ने कहा –मेरा नाम पंथक है !
पापक अब दंश पीड़ित की तरह तिलमिलाता हुआ आचार्य के समीप पहुंचा !चरण स्पर्श कर बोला –भगवन! मेरा जो भी नाम हो वही ठीक है ! “जीवक” को मैंने मरते देखा है , “शीलवती” को दुराचार करने के बाद पिटते हुए देखा है और “पंथक” को पथ भूलकर भटकते हुए देखा है !मैंने समझ लिया है –नाम सिर्फ पहचान के लिए है ,उससे साधना में कोई अंतर नहीं पड़ता !
सिद्धि नाम से नहीं कर्म से मिलती है ! यदि कर्म सुन्दर है ,श्रेष्ठ हैं तो असुंदर प्रतीत होने वाला नाम भी चमत्कार दिखा सकता है!

No comments:

Post a Comment