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Saturday 29 October 2011

अंतरात्मा की शुद्धि

  • महाभारत के युद्ध के बाद पांडव श्रीकृष्ण के दरबार में पहुंचे !
                 निवेदन किया – हे नारायण ,हमसे इस युद्ध में बहुत पाप और हिंसा हुई है हम इसीलिए तीर्थ यात्रा करना चाहते हैं !आप हमें इसकी अनुमति प्रदान करें ! श्रीकृष्ण ने कहा –ठीक है !जाओ लेकिन ये मेरी तुम्बी साथ लेते जाओ ,जहाँ जहाँ तुम एक बार स्नान करो उस नदी में इसे दो बार स्नान करवाना ! श्रीकृष्ण की बात में कोई गुढ़ अर्थ होगा ऐसा जानकर वो तुम्बी को साथ ले कर चल पड़े ! तीर्थ भ्रमण करते हुए विभिन्न स्थानों पर हो कर वो वापस द्वारिका पहुंचे !
                  सुबह को श्रीकृष्ण का दरबार लगा था ! वहां पहुँच कर उन्होंने प्रणाम निवेदित किया और श्रीकृष्ण की दी हुई तुम्बी उन्हें वापस समर्पित की ! श्रीकृष्ण ने पूछा – ठीक से इसे स्नान तो करवाया ! जी नारायण – युधिष्ठर ने कहा ,जैसे आपने कहा था वैसे ही हमने जहाँ जहाँ स्नान किया ,इसे दो दो बार स्नान करवाया ! बहुत अच्छा ! श्रीकृष्ण ने एक दरबारी को बुलाया और उस तुम्बी के पांच टुकड़े करने को कहा ! पांच टुकड़े हर पांडव को देने पर कहा –इसे जरा चख कर तो देखो ! पांचो पांडवो ने इसे चख कर देखा तो कहा –यह तो खारा है ! श्रीकृष्ण ने कहा –यह खारी कैसे हो सकती है ,इसे तुम ने ठीक से स्नान नहीं करवाया क्या? पांडव हैरान थे –युधिष्ठर ने कहा –हे कृष्ण ! यह तुम्बी कैसे अपना स्वाद छोड़ सकती है !
                  नारायण श्रीकृष्ण बोले –यही तो मै तुम्हे समझाना चाहता था कि नदियों में स्नान से क्या होने वाला है ! युधिष्ठर ने कहा – यह तो आप हमें जाने से पहले भी बता सकते थे लेकिन फिर ऐसा आपने क्यों नहीं किया ! अगर मै पहले तुम्हे ऐसा कहता तो तुम कभी भी इस रहस्य को नहीं समझ सकते थे –नारायण श्रीकृष्ण का उत्तर था ! आत्मा नदी संयम जल से पूर्ण हो,सत्य का प्रवाह हो व दया एवं शील के दोनों तट हों ! ऐसे स्थान पर हे पाण्डु पुत्रों, तुम स्नान करो! तुम्हारी आत्मा पवित्र होगी !बाह्य स्नान से अंतरात्मा कि शुद्धि नहीं होने वाली है |
  महान  जैनाचार्य श्री तुलसी जी

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