मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Monday 31 October 2011

लेश्या -परिणामों का खेल !

   जिन लोगों ने तुम्हारे साथ बुराई की है उसको शीघ्र भूलजाओ क्योंकि उनका एक क्षण का भी स्मरण अनन्त जन्मों के अर्जित आनंद को पल में नष्ट कर देता है !
   महात्माओं कि निकटता का एक भी क्षण स्मृति हो आता है तो भयंकर पीड़ा उत्पन्न करने वाले घावों का दर्द उसी क्षण भूल जाते हें !
   परमात्मा स्मरण एक ऐसी औषधि है जो जन्म मरण के रोग पल में समाप्त कर देती है !
आचार्य पुष्पदंत सागर जी की पुस्तक “परिणामों का खेल”से
      /------------/---------------/------------------/------------/

“............एक पुराना सैनिक , बाजार से एक कटोरे में घी लेकर चला आ
रहा था कि किसी ने मजाक करने की नियत से सहसा कहा –‘अटनशन’
और बेचारा सैनिक आदत के मुताबिक पूरी तरह तन कर खड़ा हो गया उसका घी का कटोरा जमीन पर .....,उसी रास्ते पर दो और भी आदमी चले जा रहे थे उनमे से एक ने भी सुना “अटेन्शन’ लेकिन वह जैसे जा रहा था वैसे ही चलता रहा ! हाँ उक्त सैनिक के इस आचरण पर हँसने के लिये जरूर ठहर गया जैसा कि आधुनिक आदमी का स्वभाव है !
दूसरा आदमी प्रतिक्रिया विहीन रहा अतएव पहले आदमी ने पुकारा ‘अजी’देखा तुमने उस सिपाही को?वह पहले सैनिक को ओर फिर आदमी को देखता है ओर अपने कार्य में लग गया !
     यद्यपि घटना एक ही थी तथापि मन की विचारधारा ,शारीरिक प्रतिक्रिया य आचरण भिन्न -२  था ! यह मनोविशारदो की प्रयोगशाला
में अध्ययन का विषय बन गया .......वह सैनिक जीवन भर सैनिक आज्ञा के उचित पालन के संस्कारों से सरोबार था !प्रथम दर्शक ने मात्र बेकार अवस्था में थोडा हँस लेने का उपक्रम किया व दुसरे दर्शक के मन में, पत्नी द्वारा बताये कार्य को न कर पाने के कारण द्वंद चल रहा था कि क्या जबाब दूँगा वह इसी उधेड़बुन में था ! उपस्थित हास्यप्रद माहोल भी उसे विचलित न कर सका ! एक घटना पर मनोयोग के विभिन्न रूप परिलक्षित होते हें ! मनोविदों ने प्रयोगात्मक निष्कर्ष में बताया कि ‘मनोयोग’की  तीव्रता ओर मंदता ‘स्वार्थ’ की मात्रा के सीधे अनुपात  से घटती बढती है !इन्हें जैन दर्शन में लेश्या का नाम दिया गया है !
आचार्य पुष्पदंत सागर जी की “परिणामों का खेल” से   

No comments:

Post a Comment