मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Sunday 30 October 2011

क्रोध

          गुरु और शिष्य विहार कर रहे थे |रास्ते में चलते –चलते गुरु के पैरों तले एक मेंढक आ कर मर गया ! शिष्य में कहा –गुरूजी आप से अनजाने में ही सही अपराध हो गया इस जीव के प्रति,अत:आप प्रायश्चित ले लीजिए !गुरु ने उसे गुस्से से देखा !शिष्य बेचारा चुप हो गया –उसने सोचा शायद यह उचित समय नहीं है !शाम को प्रतिक्रमण के समय बात करूँगा !शाम हुई- सभी शिष्य और गुरु एकत्रित हुए सब ने अपने अपने दिन की गलतियों पर गुरु से स्वयं की आलोचना की और प्रायश्चित ग्रहण किया !शिष्य ने सोचा –शायद यह सही मौका है –गुरुजी को भी उनकी गलती के बारे में याद दिलाने की –भोला था बेचारा !फिर क्या था गुरु तो आग बबूला हो गए !दौड पड़े –शिष्य आगे आगे गुरु पीछे पीछे !गुस्से में होश कहाँ रहता है-गुरु वहां पर एक खम्भे से टकराया और वहीँ उसकी मृत्यु हो गई !मर कर चंडकौशिक सर्प बना !
         शिक्षा ये है कि प्रतिकूल बात में भी क्रोध न करें –इससे यह जन्म और अगला जन्म भी बिगड सकता है ! एक पल का क्रोध आपका भविष्य बिगाड़ सकता है !
          जय जिनेन्द्र ,नमस्कार
          शुभ प्रात: 

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