मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Saturday 18 February 2012

मानव जन्म और तपस्या

                  मानव जन्म  पिछले जीवन मे किये बड़े  पुण्य से मिला है ! इस शरीर को पाप मे गँवा दिया तो तुम्हारे लिए घातक हो जाता है और यही शरीर यदि धर्म मे लगा दिया तो साधक हो जाता है ! देखिये कितना अंतर आ गया ? यह शरीर भोगों मे सुखाने के लिए नही ! एक तपस्वी भी अपनी काय को सुखाता है और एक भोगी भी अपनी काय को सुखाता है ! योगी भी शरीर की उर्जा को नष्ट करता  है और भोगी भी शरीर की शक्ति को खर्च करता है ,योगी अपनी शरीर की उर्जा को ऊपर की दिशा मे भेज देता है और भोगी अपनी शक्ति को नीचे की दिशा मे भेज देता है ,दोनों अपनी उर्जा का उपयोग करते हैं ,बस अंतर इतना है ! नाभि स्थान पर उर्जा संगृहीत है ! वाणी की जितनी भी शक्तियां प्रकट होती हैं वे सब नाभि स्थान से होती हैं ! नाभि चक्र पर यदि कंट्रोल कर लिया तो उर्जा ऊपर की ओर बढनी शुरू हो जायेगी ! नाभि केन्द्र पर जिनका कंट्रोल नही है ,उसकी उर्जा भी अधोगमन हो कर नीचे की ओर बह जायेगी ! भोगी अपनी उर्जा का अधोगमन कर देता है ,ओर योगी अपनी उर्जा का उर्ध्वारोहन कर देता है ,तब योगी को स्वत: अनेक अनेक शक्तियां प्रकट हो जाती हैं ! इसी को बोलते हैं तपस्या ! उर्जा का उर्ध्वारोहन करना ही तपस्या है 
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज "दस धर्म सुधा " मे 

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