मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Wednesday 1 February 2012

सिद्ध जिनेश्वर

                    सिद्ध जिनेश्वर तो सबसे बड़े हैं ,सबसे दयालु हैं ,सिद्ध हैं ,सबसे बड़े उपकारी हैं ! अपन किसी का उपकार करने जाते हैं तो नियम से किसी न किसी का अपकार होता ही है ! मै तुम्हारे ऊपर उपकार कर रहा हूँ ,तुम्हे उपदेश देकर ,लेकिन किसी जीव के प्रति अपकार कर रहा हूँ ,वाणी बोल कर ,क्योंकि वचन बोलूँगा तो नियम से वायुकायिक जीवों की विराधना तो होगी ही ! एक इन्द्रिय जीवों को धक्का लगेगा ! आपका तो उपकार हो गया ,आपको सहारा देकर ऊपर उठा रहा हूँ ,लेकिन आपको नही मालूम कितने जीवों को गिराना पड़ रहा है ! एक संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव का उपकार कर रहा हूँ ,एक  इन्द्रिय जीव का तो उपकार कर ही नही सकता ,उपकार होना ही नही है ! इसीलिए वह मरण को प्राप्त हो भी जाएँ तो कोई बात नही ,यह तो मन को समझा कर संतुष्टि पा लेते हैं ,लेकिन जब साधना एवं विराधना की तरफ जाते हैं तो प्रतीत होता है कि विराधना तो विराधना ही है !
                     "इसीलिए सिद्ध जिनेश्वर सबसे बड़े उपकारी है कि उनसे किसी का अपकार नही होता "
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज  "दस धर्म सुधा " मे  
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:



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