मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Thursday 16 February 2012

गुरु की महिमा वरनी न जाए

गुरु की महिमा वरनी न जाए
गुरु नाम जपो मन वचन काय !
 पूजाकार कहता है -संयम रुपी गुरु मिल जाए तो उनकी महिमा का क्या कहना ? जो गुरु संयमी नही हैं ,वो पत्थर की नाव के समान  हैं ! पंच परमेष्ठी ही सच्चे गुरु हो सकते हैं ! पंच परमेष्ठी के अलावा जो गुरु मानता है ,वो मिथ्यादृष्टि है ! पंच परमेष्ठी है ,अरिहंत ,सिद्ध ,आचार्य ,उपाध्याय ,साधु !
ज्ञान  छाया है तो संयम फल है ,दो पेड होते हैं ,एक फलदार पेड और एक बिना फल वाला पेड ! बबूल का पेड ! जिससे छाया तो मिलती है ,लेकिन भूख से  तड़प तडप कर मर जाओगे ,लेकिन फल नही मिलेगा ! बबूल  की छाया मे तड़प तडप कर मर जाओगे ,लेकि आम जैसा  फलदार पेड होगा तो उसकी छाया मे चले जाना ,छाया तो मिलेगी ही और भूख लगेगी तो आनंद मे डूब जाओगे ! लेकिन संसार की दोपहरी मे ज्ञान रुपी छाया मिल जाए और साथ मे संयम रुपी फल मिल जाए तो आनंद आ जाता है ! संयम रुपी फल पाते ही जी परिणामिक भावना का स्वाद चखने लगता है ! शुद्ध आत्मा का अनुभव होने लगता है ! लेकिन ज्ञान के साथ संयम जुड़ने का अर्थ है जीवन रुपी फलदार पेड मिल गया ! जिसको ज्ञान के साथ संयम मिल गया उसकी जिन्दगी मे छाया तो मिली और फल भी मिल गया !
संयम को  बाहर से   देखो तो गम ही  गम नजर आते हैं
जरा    अंदर जाओ   तो सरगम   लहराते  नजर आते हैं !
 मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज  "दस धर्म सुधा " मे 
 सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:



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