मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Sunday 5 February 2012

मीरा ने पीया विष का प्याला

                         जैसे विष खाकर वैद्य मरण को प्राप्त नही होता ,वैसे ही ज्ञानी जीव कर्म फल को भोगता हुआ भी बंध को प्राप्त नही होता ! इसीलिए नीतिकार कहते हैं कि ज्ञानी के हाथों से जहर भी पी लेना ,अज्ञानी के हाथ से अमृत भी मत पीना ! ज्ञानी तुम्हे जहर भी दे दे तो आँख बंद करके पी जाना ,कि उसी मे तुम्हारी भलाई हो ,उसी से तुम्हारा रोग दूर हो जाए !जो सच्चे गुरु होवें वो जहर भी देवें तो पी लेना चाहिये ! मरोगे तो अमर हो जाओगे !मीरा के लिए विष का प्याला दिया गया था ,लेकिन मरी नही थी वह ,मीरा तो भगवान के भजन मे मगन रहती थी  "ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन ,वो तो गली गली प्रभु गुण गाने लगी " ! राज घराने से बर्दाश्त नही हुआ कि रानी गली गली जोगन बन भजन गाये ,दर दर भिक्षा मांग कर भोजन करे ! "संतन बीच बैठ-बैठ लोक लाज खोई ! भूल गई कुल की कान ,कहा करे कोई "! सरलता आ गयी मायाचारी खो गई ! मीरा को कृष्ण के नाम का प्रसाद दिया गया ,जहर मिला के ! मीरा तो धर्म स्वीकार कर चुकी थी ,निश्चय कर चुकी थी ,निश्छल हो चुकी थी ,उसे कोई छली व्यक्ति दीखता ही नही था ,"जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि !निश्छल व्यक्ति तो सारी दुनिया को सही मानता है !वीतरागी सारी दुनिया को वीतरागी मानता है ,रागी सारी दुनिया को रागी मानता है ,बस पी लिया वह विष का प्याला ! वही विष का प्याला भी उसका कुछ न बिगाड़ सका ! 
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                              यदि काय के पाप से बच गए होंगे तो वचन से पाप किया होगा ! और वचन के पाप से भी बच गए हो तो मन से पाप तुमने अनंतों बार किया होगा !मन के पाप से बचना बहुत कठिन है ,कोई नही बच पाता ! सबसे ज्यादा पाप व्यक्ति करता है तो मन से ही करता है ! 
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज  "दस धर्म सुधा " मे

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