मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Wednesday 7 March 2012

स्त्री की सीख

                    एक संत तुलसीदास हुए ! उनकी शादी होगई ! शादी हो जाए तो पुरुष स्त्री के साथ हीरहना चाहता है ,स्त्री को छोड़ने का परिणाम नही करता ! लेकिन करे क्या ? आषाड सुदी नवमी को शादी हुई ! एक महीना पास रही ,रक्षा बंधन आ गया ! भाई अपनी बहन को लिवाने आ गया ! तुलसीदास को वह साले साहब ऐसे लगे जैसे ऊपर तो कह रहे कि आइये साले साहेब और अंदर से कि आ गए साले !  आ गए मेरी प्राण प्रिया को छुडाने के लिए ! जो लोलुपी होता है उसे एक क्षण को भी विषय भोग का विरह पसंद नही आता ! एक दो दिन बीते ! तुलसीदास से नही रहा गया ! अँधेरी रात ! बारिश की झड़ी ,बीच रास्ते मे नदी और उस पर नदी मे बाढ़ ! मुर्दे का सहारा लेकर नदी को पार कर गए ! सांप को रस्सी समझ कर ऊपर चढ गए और पत्नी के कमरे मे पहुँच गए ! पत्नी ने देखा तो कहा -धिक्कार है इस हाड मांस के शरीर मे इतना राग कि तुम अपने प्राणों की बाजी लगाकर आ गए ! इतना मोह मुझसे ,इस सात धातुओं के बने इस शरीर से ? भुजंग जिसे देखकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं तु इसे पकड़कर ही ऊपर आ गए?
                       इस  मोह को धिक्कार है ! यह हड्डियां और मांस अति नीरस है ,इतना प्रेम यदि तुम आत्मा रुपी राम से कर ले तो तेरे समस्त काम सुधर जाएँ ! 
                      तुलसीदास महान भव्य थे ! संत की योग्यता लिए हुए थे ! जाग गए ! खिड़की से कूदकर बनारस आ गए ,इतने बड़े राम भक्त बने कि पंचम काल मे वैष्णव सम्प्रदाय के सबसे बड़े संत के रूप मे प्रसिद्द हुए !

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