मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Sunday 18 March 2012

आग मे तप के ही जो निखरे

जिस प्रकार नौशाद्दर और सुहागा डालकर सुवर्ण को अग्नि मे अच्छी
 तरह तपाने से वह बिलकुल खोट रहित शुद्ध हो जाता है ! उसी प्रकार
 सत्पुरुषों की संगति को प्राप्त होकर अपने मन को पुनीत बनाने और
 बाहरी   आवश्यकता  को  रूप  तपस्या  के   द्वारा   हम अपनी 
आत्मा को भी शुद्ध निर्दोष बना सकते हैं ! ऐसा करने से हमारे साथ लगे
 हुए  रागादि दोष मिट  सकते हैं ! ऐसा करने से वह जीवात्मा परमात्मा
 बन जाता है ,जैसे कि पारस का संसर्ग पाकर लोहा भी स्वर्ण बन जाता
 है ! चन्दन के पेड के समीप रहने वाला नीम का पेड भी चन्दन ही हो 
जाया करता है !
आचार्य श्री     108    विद्यासागर जी महामुनिराज

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