मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Tuesday 20 March 2012

वीतरागी सर्वज्ञ अरिहंत प्रभु !

वह शास्ता बिना किसी अपने प्रलोभन के केवल निस्स्वार्थ भाव से राग के बिना भव्य जनो को हित का उपदेश देते हैं ! बजाने वाले शिल्पी के हाथ का स्पर्श पाकर ध्वनि करने वाला मृदंग क्या किसी से अपेक्षा रखता है ? 

सर्वज्ञ देव अपने निजी प्रयोजन के बिना ,ख्याति लाभ पूजा ,प्रतिष्ठा कि चाह के बिना भी सिर्फ भव्यजनों के पुण्योदय से उनके कल्याण का मार्ग उन्हें दिखाते हैं ! 
अपने प्रयोजनको लेकर किसी व्यक्ति की मदद की ,उसका कष्ट दूर किया इसमें कौन सी बड़ी बात हुई ! यह तो आम आदमी का काम है ! बड़ा आदमी तो वह है जो सहज रूप से ही दूसरों के कष्ट दूर करने के लिए तत्पर रहता है ! सत्पुरुष का तो सर्वस्व ही परोपकार के लिए होता है ,वे दूसरों का भला करके ही अपने जीवन को सफल बनाते हैं ! गाय का दूध औरों के ही काम आता है ,पेड दूसरों के लिए ही फल देता है मेघ बरसकर ही विश्व का कल्याण करते हैं !
संसार के प्राणियों को त्रस्त देख कर अपने द्याद्र दिल मे ये विचार करते हैं कि ये प्राणी कौन से उपाय से अपने इस दुःख संकट से मुक्तहो सकते हैं ! ऐसे हैं वीतरागी सर्वज्ञ अरिहंत प्रभु !
मूल रचना  :    "रत्न करंड  श्रावकाचार "मानव धर्म  आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी 
 हिन्दी व पद अनुवाद : आचार्य श्री ज्ञान सागर जी व आचार्य श्री विद्या सागर जी    

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