मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Thursday 29 March 2012

स्थितिकरण अंग

          सम्यक् दर्शन अथवा सम्यक चरित्र से चलायमान होने वाले लोगों का धर्म वत्सल जनों के द्वारा पुन: अवस्थापन करने को प्राज्ञ पुरुष स्थितिकरण अंग कहते हैं !
        इस  सँसार मे कोई भी व्यक्ति अपना कार्य दुसरे की सहायता के बिना नही कर सकता ! इसीलिए  हम भी दूसरों की मदद करना सीखें ! कहीं ऐसा न  हो  कि आजीविका की कमी से या रोग से या और किसी कारण से घबराकर कोई भई बहन अपने सदाचार या समुचित विशवास से भ्रष्ट होकर पतित हो जाए ! बेसहारा को सहारा देकर थामना और जो ठोकर खा कर गिर पड़ा हो उसे उठाकर फिर से सावधान करना ही होशियारी है न कि उसे कोसना ! भूल होना कोई बड़ी बात नही है ,भूलना मनुष्य का प्राकर्तिक धर्म है और हम जानते हैं तो प्रेम पूर्वक मीठे शब्दों मे उसे समझाएं ! रास्ते पर लाएं ! वरना हमारी समझदारी किस की ! साथी का साथ वही जो आपत्ति के समय साथ आये ,काम आये !
मूल रचना  :    "रत्न करंड  श्रावकाचार "मानव धर्म  आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी 
 हिन्दी व पद अनुवाद : आचार्य श्री ज्ञान सागर जी व आचार्य श्री विद्या सागर जी   

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