मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Friday 9 November 2012

मित्र और मेहमान


मित्र और मेहमान    Post Inspired by the post of Dr Manisha Dhoka Jain 
(My dear didi at facebook ) 

 ना      हम     निगाहों     से     दूर  जाते हैं ,
ना     हम    किसी   को  कभी  तड़पाते हैं !
जब भी
जीचाहे आवाज दे के देख लेना ,
तेरे   रस्ते  में फूल  बिछाने    ही जाते हैं !
  ……….Rajesh 

मित्र कभी मेहमान  नहीं होता ! मित्र तो सदा मित्र ही रहता है ! मित्र के आगे मेहमान का मूल्य ही क्या ? मित्र और मेहमान की आपस मे कोई तुलना ही नहीं है ! एक पूर्व है तो दूसरा पश्चिम !मित्र के साथ कोई दुराव छिपाव नहीं होता ,दिलों की दूरी नहीं होती ,दोनों की देह दो होती है और दिल एक !
मेहमान के साथ होता है औपचारिकताओं का पूरा एक पुलिंदा ,उसके सामने घर की कोई कमजोरी जाहिर नहीं की जा सकती ,उसके आथित्य सत्कार मे कोई कमी नहीं रहनी चाहिए ,मेहमान के कारण मन मष्तिस्क पर ऐसा बोझ बना रहता है कि भले ही उधार क्यों न लेना पड़े ,पर मेहमान का स्वागत सत्कार तो भरपूर होना ही चाहिए ! जबकि मित्र के साथ ऐसी कोई चिन्ता नहीं रहती !
मेहमान भले ही प्यासा बैठा रहेगा पर पानी मांग कर नहीं पिएगा और मित्र चौंके मे जाकर अपने आप चाय बना कर पी लेगा !
मित्र कभी किसी बात का बुरा नहीं मानता और मेहमान यदि बात –बात मे बुरा न माने तो वह मेहमान कैसा ? नाराज होना और मनवाना तो मेहमान का जन्म सिद्ध अधिकार है !
“जिन खोजा तिन पाइंया” से  

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