मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Wednesday 7 November 2012

बालक सर्वप्रथम माँ का दुग्ध पान ही करता है ,रक्त पान नहीं !


प्रकृति ने मनुष्य को जन्म से ही शाकाहारी बनाया है ! इसीलिए जन्मता हुआ बालक सर्वप्रथम माँ का दुग्ध पान ही करता है ,रक्त पान नहीं ! मनुष्य ने रसना इन्द्रिय की लोलुपता के कारण मांस को ही अपना प्रिय आहार बनाना शुरू कर दिया   है ! जाने क्यों सारी दुनिया इस अंधी दौड में मांसाहार की ओर बढ़ रही है ? नित्य नए नए खुल रहे KFC और Mcdonalds इसके उदाहरण हैं !
कुछ सिरफिरे लोग अंडा और मछली का उत्पादन कर रहे हैं और उसे शाकाहार सिद्ध करने के लिए खेती का नाम दे रहे हैं ! लेकिन अंडा कभी भी शाकाहार नहीं हो सकता ,न ही वह वृक्षों में लगता है न ही भूमि से उपजता है ,वह तो मुर्गी के जिस्म से उत्पन्न होता है ,मुर्गे और मुर्गी के रज और वीर्य का परिणाम है ! उसे खाना मांस खाने के ही बराबर है !
वैसे भी अण्डों में कोलस्ट्रोल की अधिक मात्रा होती है ,जिसमे धमनियों में सिकुडन ,लकवा ,दिल का दौरा ,कैंसर आदि बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है !
जिस स्थान पर मुर्दे को जलाया जाता है उसे श्मशान कहते हैं ,जिस स्थान पर मुर्दे को दफनाया जाता है ,उसे कब्रिस्तान कहते हैं ! अगर कोई अपने रसोईघर में मुर्दा (बकरा ,मछली ,मुर्गा ,गाय आदि मारे हुए जीवों का मांस ) को पका रहा है तो रसोईघर शमशान हुआ और कोई उसे खा रहा है तो उसका पेट हुआ कब्रिस्तान ! इसीलिए मनुष्य को चाहिये कि वह मांसाहार को त्याग कर अपने रसोईघर और पेट को शमशान व कब्रिस्तान होने से बचाए !
शास्त्र कहते हैं ,जो मनुष्य मांस खाता है वह निश्चित ही भविष्य में अपंग व  संतानहीन होता है !
जिह्वा के मात्र दो ही काम हैं –चखना व बकना ! बुरा बकने के बुरे परिणाम सामने आयेगें और बुरा चखने से बुरी गति का मेहमान होना पड़ेगा !अत: जिह्वा की लोलुपता को छोड़ कर सात्विकता को जन्म दें !
मुनिश्री सौरभ सागर जी के प्रवचनों से !
“While we ourselves are the living graves of murdered beasts, how can we expect any ideal conditions on this earth?”
George Bernard Shaw

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