मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Saturday 22 June 2013

गुण दोष



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ मध्यान्ह !
गुणों के साथ
अत्यन्त आवश्यक है
दोषों का बोध होना भी ,
किन्तु
दोषों से द्वेष रखना
दोषों का विकसन है
और
गुणों का विनशन है !
काँटों से द्वेष रखकर
फूलों की गंध मकरंद से
वंचित रहना
अज्ञता ही मानी है
और काँटों से अपना
बचाव कर
सुरभि सौरभ
का सेवन करना
विज्ञता की निशानी है
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में  


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