मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Sunday 23 June 2013

साहित्य



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !

हित से जो युक्त समन्वित होता है
वह सहित माना है
और
सहित का भाव ही
साहित्य बाना है
अर्थ यह हुआ कि
जिस के अवलोकन से
सुख का समुद्भाव संपादन हो
सही साहित्य वही है
अन्यथा
सुरभि से विरहित
पुष्प सम
सुख का राहित्य है वह
सार शुन्य .....शब्द झुण्ड .......
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में 

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