जय जिनेन्द्र बंधुओं
! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
बदले का भाव
वह दलदल है
कि जिसमे
बड़े बड़े बैल ही क्या
बलशाली गजदल तक
बुरी तरह फंस जाते
हैं
और गल कपोल तक
बुरी तरह धंस जाते
हैं !
बदले का भाव
वह अनल है
जो जलाता है
तन को भी चेतन को भी
भव-भव तक !
बदले का भाव
वह राहू है
जिसके
सुदीर्घ विकराल गाल
में
छोटा सा कवल बन
चेतन स्वरुप भानु भी
अपने अस्तित्व को खो
देता है !
आचार्य
श्री 108 विद्यासागर जी
महा मुनिराज “मूक माटी” में
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