मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Saturday 2 March 2013

ध्यान


जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
ध्यान से बात करना अलग है और ध्यान की बात करना अलग है ! ध्यान केन्द्र खोलने मात्र से ध्यान केंद्रित हो जाना संभव नहीं है ! ध्यान से बात करना सामन्य साधक  की बात नहीं है ! जो बड़े श्रेष्ट साधक होते हैं ,वही ध्यान से बात कर सकते हैं !  ध्यान मे लीन हो जाने पर ध्याता ,ध्यान व ध्येय एक हो जाते हैं ! भेद का सवाल ही नहीं रह जाता है !
 शब्दों के शोर मे दिखता अजब तमाशा है ,
ध्यान सिंधु मे उतरो तो मिलता जब बताशा है !
आत्मा की बात ओठों से नहीं की जाती है ,
उतरो ध्यान सिंधु मे , जहाँ भाषा मूक हो जाती है !
आर्यिका माँ श्री प्रशान्तमति जी “माटी की मुस्कान” मे ! आचार्य श्री विद्यासागर जी की “मूक माटी” पर आधारित !

No comments:

Post a Comment