मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Saturday 9 March 2013

Promote love instead of enmity


Promote love instead of enmity to make the mind neat and clean. Bitterness , hate, lust and fear should be evicted out instead of suppressing them inside . 
जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
जब आँखें आती हैं तब भी दुःख देती हैं और जब जाती हैं यानि फूट जाती हैं तो दुःख देती हैं ! कहाँ तक कहें ,आँखें जब लग जाती हैं अर्थात किसी से प्रेम हो जाता है तब दुःख देती हैं और आँखें लगती हैं यानि किसी की नजर लगती है तब भी दुःख का अनुभव होता है ! आँखों मे सुख नहीं है ,आँखें दुःख की खानी रूप हैं ! सुख से वंचित करने वाली होती हैं ! इसीलिए साधु सन्त इन आँखों पर विश्वास नहीं करते हुए हमेशा विनीत दृष्टि करके नीचे चरणों को देख कर चलते हैं ! धन्य है वो !
वो कहते हैं ,दुःख से यदि भय हो तो सुन लीजिए ! परिश्रम से प्रीति कीजिये ! अगर (मै) आत्मा से प्रेम हो गया हो तो हर प्रकार की (चरम) अति से भय कीजिये ! शान्ति धारण कीजिये ,समता का वरन कीजिये ! आर्यिका माँ श्री प्रशान्तमति जी “माटी की मुस्कान” मे ! आचार्य श्री विद्यासागर जी की “मूक माटी” पर आधारित !

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