मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Friday 1 March 2013

दर्शन व आध्यात्म



जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
दर्शन का स्रोत मस्तक है तथा जो स्वास्तिक से अंकित ह्रदय होता है ,उसमे आध्यात्म का झरना बहता है ! दर्शन यदि न भी हो तो आध्यात्म का जीवन चल भी सकता है ,चलता ही  है ! आध्यात्म को दर्शन की जरूरत ही नहीं है और आध्यात्म के बिना दर्शन का देखना / श्रद्धान नहीं हो सकता ! लहरों के बिना सरोवर रह सकता है लेकिन सरोवर के बिना लहरों का अस्तित्व होना ही संभव नहीं हो सकता !
तैरने वाला तैरता है सरोवर मे ,उसे भीतरी नहीं बाहरी दृश्य दिखाई पड़ते हैं, यह है दर्शन ! वहीँ पर दूसरा दुबकी लगाता है, उसे सरोवर का भीतरी भाग दिखाई पड़ता है ,बाहर के दृश्य समाप्त हो जाते हैं ,यह है आध्यात्म !

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